हमारा गाँव और रोज़गार

अन्वेषक: नेकराम शर्मा व्यवसाय: कृषक स्थान: करसोग, हिमाचल प्रदेश हमारे अगले परिंदे नेकराम शर्मा करसोग, हिमाचल प्रदेश के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते है। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे खेती करने लग गये थे। 90 के दशक के शुरुआती दौर मे हिमाचल सरकार द्वारा साक्षारता अभियान चलाया गया । नेकराम जी इस अभियान से जुड़ गए । वे खेती के साथ गाँव-गाँव जाकर लोगों को साक्षर करने में लग गये थे। उसी दौरान उनकी मुलाक़ात हिमाचल के कुछ बुद्धिजीवियों और समाज सेवकों से हुई। उनसे मिलने के बाद, हिमाचल के लोगों की बदहाली के कारणों पर उनकी समझ विकसित हुई। तब वे लोगों को पढ़ाने के साथ-साथ…

दुनिया कि भेडचाल से परे

अन्वेषक: नवीन पांगति व्यवसाय: कृषक स्थान: अल्मोड़ा, उतराखंड हमारी अगली कहानी एक ऐसे परिवार की कहानी है जिन्होंने आपस मे मिलकर यह तय किया है की वे शहर की तेज़ भागती-दौड़ती जिंदगी से दूर किसी गाँव मे अपनी जिंदगी बसर करेंगे। वहाँ रहकर एक तरफ जहाँ वे अपनी जड़ों को तलाशेंगे वहीं दूसरी तरफ गाँव के लोगों के साथ मिलकर उनके हुनर को एक पहचान देने की कोशिश करेंगे। इसी के साथ वे उनके लिए आय के नए स्त्रौत व विकल्प खोजेंगे। नवीन पांगति उतराखंड राज्य के मुनसियारी क्षेत्र के मूलनिवासी है। जब उन्होने इंजीनियरिंग मे दाखिला लिया था तभी उन्हे एहसास हो गया था की कुछ गड़बड़ हो गयी…

दवाई से मरता जीवन

अन्वेषक: विपिन गुप्ता व्यवसाय: समाजिक कार्यक्रता स्थान: भोपाल, मध्यप्रदेश स्वस्थ लोगों के मन मे अगर यह बैठा दिया जाए की वे बीमार है तो काफी पैसा बनाया जा सकता है। दवाई निर्माता कई वर्षों से यह खेल आम जनता के साथ खेल रहे है। साधारण मनुष्य के शरीर मे कई रासायनिक क्रियाओं की वजह से बुखार, जुखाम, सर्दी आम बात है। आमतौर पर यह हमारे शरीर को और मजबूत बनाने का कार्य करती है। बुखार मे हमारे शरीर से कई तरह के टोकसीन्स शरीर से बाहर निकलते है, पर जब हम दवाई लेकर इस क्रिया को रोक देते है तो यह टोकसीन्स हमारे शरीर मे ही रह जाते है। जिसका असर…

चलो वापस कृषि कि ओर

अन्वेषक: विवेक चतुर्वेदी व्यवसाय: तकनीकी कृषक स्थान: कानपुर, उत्तर प्रदेश हमारे अगले परिंदे, विवेक चतुर्वेदी के लिए एक समय पैसा ही सबकुछ था। उनका अपना व्यापार था, उस व्यापार से और अधिक पैसा कमाने की धुन में, उन्होने अपना समस्त जीवन उसमे झोंक रखा था। पैसा ही कमाने के लिए उन्होने कुछ साल पहले एक जमीन के टुकड़े मे निवेश किया था। जमीन खरीदने के कुछ समय बाद उन्हे “जीवन विद्या” नामक एक कार्यशाला मे भाग लिया था। इस कार्यशाला ने उन्हे जीवन के विभिन्न आयामों को देखने की एक दृष्टि प्रदान की। यहीं से उनके जीवन की एक नयी यात्रा की शुरुआत हुई, जहाँ रुपयों-पैसों से परे जाकर वे…

प्रकृति पृष्ट…

अन्वेषक- महेश चंद्र बोरा और निशा बोरा व्यवसाय-उपक्रमी स्थान-असम हमारे अगले परिंदे महेश चंद्र बोरा और निशा बोरा कागज बनाते है। परंतु इस कागज की खास बात यह है कि इसे बनाने के लिए वे गेण्डे और हाथी के गोबर का प्रयोग करते है। उनके इस उपक्रम का मकसद एक सींग वाले एशियाइ गेण्डे को बचाना है। पुरी दुनिया में जीतने भी एक सींग वाले गेण्डे बचे है उसमे से 80 प्रतिशत असम मे पाये जाते है, परंतु इनकी संख्या मे बेहद तेज़ी गिरावट आ रही है। एक तरफ काले बाज़ार मे इनके सींगों की ऊँची कीमत की वजह से इन्हे अवैध तरीकों से मारा जा रहा है वही दूसरी…

कला से बचता वन्यजीवन

अन्वेषक: भगवान सेनापति व्यवसाय: हस्त शिल्पकार स्थान: नगांव, असम हाल ही में WWF(वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फ़ंड) और जूलोजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन के शोधकर्ताओं ने अपनी शोध मे कहा है की 2020 तक हमारी दुनिया से दो तिहाई वन्य जीवों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। पहाड़ों से लेकर जंगलों तक, नदियों से लेकर समुद्र तक, हाथी,गैंडे, गिद्द, ह्वेल आदि हजारों प्रजातियाँ आज खतरे में है। इस शोध के अनुसार इतने वृहद स्तर वन्य जीवों के लुप्त होने की वजह से प्रकृति का संतुलन पूरी तरह से बिगड़ जाएगा और इसका अंत मानवता के अंत के साथ होगा। मानवों के प्रभुत्व वाले इस ग्रह पर हम मानवों को समझना होगा की हमारी दुनिया…

प्रकृति में दिखता जीवन

अन्वेषक: बकुल गोगोई व्यवसाय: पोधा रोपण स्थान: बीसवनाथ, अस्साम आज से करीब दो दशक पहले असम के तेज़पुर ज़िले के एक छोटे से गाँव के रहने वाला एक युवा अपने आस-पास लगातार कटते हुए पेड़ों और घटते हुए जंगलों को देखकर बेहद दुखी रहने लगा था। वह यह सब देखकर इतना विचलित रहने लगा था की उसे सपनों मे भी पेड़-पौधे, जंगल, नदियाँ रोते-तड़पते हुए दिखाई देते थे। एक दिन इसी तरह के सपने की वजह से जब वे आधी रात में नींद से जाग गए तब उन्होने उस दिन निश्चय कर लिया की आज से उनका पूरा जीवन प्रकृति की सेवा मे समर्पित होगा। हमारे अगले परिंदे बकुल गोगोई…

मूल्यों का बाजारीकरण / मूल्य और बाज़ारवाद

हमारे अगले परिंदे अरूप रक्षित, बॉटनी मे उच्च स्नातक की पढ़ाई करने के बाद, हावड़ा के एक सरकारी स्कूल मे शिक्षक के तौर पर कार्य कर रहे थे। चूंकि उनकी पेड़-पौधों के विषय मे रुचि थी वे भारत मे पाये जाने वाले औषधीय वनस्पतियों पर शोध कर रहे थे। शोध के दौरान उनका इस कड़वी सच्चाई से सामना हुआ कि हमारे देश की इन अनमोल वनस्पतियों का आधुनिक विज्ञान की वजह से उचित प्रयोग नहीं हो पा रहा है। इनके प्रयोग करने का जो अनमोल ज्ञान है वो लुप्त हो रहा है, क्योंकि आधुनिक शिक्षा शहरों के लिए बनी है और यह सारा ज्ञान गाँवों मे छिपा हुआ है। इस…

दुनिया एक मंच है

अन्वेषक: अंकुर रॉय चौधरी और वर्तिका पोद्दार व्यवसाय: नाटय कलाकार स्थान: कोलकाता, पश्चिम बंगाल सामाजिक अन्याय एक ऐसा विषय है जिस पर चर्चा करे बिना स्थायी विकास की बात करने के कोई मायने नहीं है। हमारे देश का सामाजिक ताना-बाना बेहद जटिल है परंतु उसे समझे बिना हम पर्यावरण संरक्षण की जो बात पिछले 10 महीनों से 52 परिंदे के जरिये कर रहे है वो अधूरी है। समाज के हर स्तर पर आपको भेदभाव और पीड़ित वर्ग का संघर्ष देखने को मिल जाएगा। वो ब्राह्मण-दलित वर्ग के बीच का संघर्ष हो सकता है या फिर व्यापारी और मजदूर वर्ग या फिर स्त्री-पुरुष के बीच का संघर्ष, हर संघर्ष की सैकड़ों…

देश कि मिट्टी को बचाओ

अन्वेषक: इश्तियाक अहमद व्यवसाय: संरक्षक स्थान: केडीया गाँव, बिहार हम लोगो मे से अधिकांश को पता है कि: बिना मिट्टी के इस पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं है। पिछले कुछ सालों मे हमारे द्वारा अपनायी गयी तकनीकों के कारण हमारी मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्व नष्ट होते जा रहे है और उसकी वजह से पूरे विश्व मे अकाल और भुखमरी का दौर चल रहा है। यह बात उन लोगों को शायद समझ नहीं आएगी जिनका मिट्टी से कोई सीधा संपर्क या रिश्ता नहीं है। जिनके लिए उनका खाना रिलायंस फ्रेश जैसे बड़े स्टोर से आता है या जो रेस्टोरंट मे खाने के आदि हो चुके है पर जिसने अपने जीवन…