अन्वेषक: पराग मोदी
व्यवसाय: पर्यावरण आदिवक्ता
स्थान: मोर्गोया, गोवा

अपनी पिछली दो कहानियों की तरह मुझे अपने नए परिंदे की कहानी से भी आधुनिक सामाजिक व्यवस्था से उत्पन्न पर्यावरण के सबसे बड़े खतरे] कचरे की समस्या को और करीब से जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। हमारे पिछले परिंदे जहां इस समस्या के प्रति जागरूकता जगाने का प्रयास कर रहे थे] वही पराग अपने बिज़नस के माध्यम से, जो कचरा इस धरती पर फैला हुआ है उसको इस धरती के लिए कैसे बहुमूल्य खजाने मे तब्दील कर सकते है? और उस कचरे से कैसे अपने लिए आजीविका प्राप्त कर सकते है?, बताने की कोशिश कर रहे है। एक आंकड़े के अनुसार 2011 मे भारत में 47 मिलियन टन ऑर्गनिक कचरा हमने डंपसाइट्स मे सड़ने के लिए डाल दिया था और सालाना हम इसमे 11.3% की दर से बढ़ोतरी कर रहे है। हमे बताया जा रहा है की प्लास्टिक का कचरा धरती के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक है जो काफी हद तक सही भी है, पर वहीं दूसरी तरफ हमसे यह छुपाया जा रहा है कि ऑर्गनिक कचरा या फूड वेस्ट का सही तरीके से प्रबंधन नहीं किया जाए तो वो प्लास्टिक से भी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।

जैविक कचरे की इस धरती मे मिलने की प्रक्रिया के दौरान कई रासायनिक क्रियाओं के कारण मीथेन गैस का निर्माण होता है और जब हम इस कचरे को सीधे डंपसाइट्स मे खुले मे फेंक देते है तो उससे निकलने वाली मीथेन गैस सीधे हमारे वायुमण्डल मे घुल जाती है जो की ग्लोबल वार्मिंग का एक प्रमुख कारण है। पराग के साथ एक सप्ताह बिताने के बाद मैंने यह जाना की कैसे हम इस कचरे को सोने से भी ज्यादा बहुमूल्य वस्तु मे तब्दील कर सकते है और अपनी कई सारी दैनिक जरूरतों को पूरा कर सकते है।

वैसे पराग जो काम कर रहे है उनकी शिक्षा के अनुसार उन्हे यह काम करने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होने अमेरिका से इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की और वही पर अपना बिज़नस शुरू किया। उनके पास ग्रीन कार्ड था वो चाहते तो वही पर रहकर अपना पूरा जीवन सारी भौतिक सुख सुविधाओं के साथ बेहद आराम से व्यतीत कर सकते थे। पर अपने बिज़नस के दौरान ही वे अपने काम से संतुष्ट नहीं थे। उन्हे लग रहा था की उनकी शिक्षा से समाज को कोई फायदा नहीं हो रहा है। तब उन्होने अपना बिज़नेस बंद करके कैलिफोर्निया मे एक एनजीओ के साथ काम करना शुरू कर दिया। वही काम करते हुए उन्हे एहसास हुआ की जो काम वो वहाँ रहकर कर रहे है] वो भारत मे रहकर भी तो कर सकते है और भारत मे कुछ अलग तरह की समस्याएँ होगी कुछ अलग चुनौतियाँ होaगी। तब उन्होने अपने परिवार के साथ भारत आने का फैसला कर लिया। भारत आने के बाद उन्होने शुरुआत मे अहमदाबाद मे कुछ सालों तक असंगठित क्षेत्र के कामगारों, कचरा इकट्ठा करने वाले बच्चों और फेरhवालों के साथ काम किया। पर उन्हे यही लग रहा था की वे लोगों की मदद तो कर रहे है पर वे किसी भी समस्या के समाधान के लिए कुछ नहीं कर पा रहे है और उनके काम से उनकी समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं निकल पा रहा है। उनके काम मे किसी भी प्रकार के नवाचार की गुंजाइश नहीं थी। और उनका इंजीनियर मन उन्हे हमेशा कुछ नया और इस पृथ्वी की समस्याओं का स्थायी समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करता था। उन्ही दिनों वे गोवा मे अपने एक दोस्त Claude Alveres से मिले। Claude खुद कई वर्षों से गोवा मे खनन और उससे संबन्धित कई समस्याओं पर काम कर रहे थे। उन्होने पराग को गोवा आने और यहाँ की समस्याओं को समझने के लिए कहा। गोवा आने के बाद उन्होने कुछ समय तक यहाँ के पारिस्थितिक तंत्र और आधुनिक विकास की वजह से उत्पन्न समस्याओं को समझा। यहीं पर उन्हे कचरे की वजह से उत्पन्न, खतरे की विकरालता का एहसास हुआ। तब उन्होने इसके समाधान खोजने शुरू किए। उन्हे पता था की हमारा आधुनिक समाज सिर्फ पैसे का मूल्य समझता है और जब तक वे कचरे से लोगों को पैसे कमा कर नहीं दिखाएंगे तब तक लोगों को इसके मूल्य का एहसास नहीं होगा और वो इसे ऐसे ही फेंकते रहेंगे। उन्होने शुरुआत मड़गाव मार्केट मे एक बायोगैस प्लांट से की, वे मार्केट से ही कचरा इकट्ठा करके वही पर गैस बनाकर कुछ रेस्टोरेन्ट को सप्लाइ करने लगे। मड़गाव मार्केट मे ही उन्होने देखा की यहां हर रोज़ कई किलो मछलियाँ दिन के अंत मे डम्प साइट मे फेंक दी जाती है। वही दूसरी तरफ गोवा की मिट्टी मे deforestation की वजह कार्बन की कमी हो गयी है। जिसकी वजह से जमीन अपनी उरवर्कता खोती जा रही है। उन्हे पता था की मछलियाँ कार्बन का एक बड़ा स्त्रोत है तभी उन्होने प्रयोग करने शुरू कर दिये कि कैसे मछलियों को कम्पोस्ट करके उसकी खाद बनाई जा सकती है जिससे ज़मीन मे कार्बन की मात्र को बढ़ाया जा सके। आज उनकी बनाई खाद गोवा के कई किसान प्रयोग कर रहे हैं और उन्हे उम्मीद से बेहतर रिज़ल्ट मिल रहे है। वे यहीं नहीं रुके, उन्होने देखा की deforestation की ही वजह से गोवा मे अच्छी बारिश होने बावजूद पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। तब उन्होने प्राकृतिक तरीके से ग्रे वॉटर का ट्रीटमंट कैसे किया जा सकता है उस बारे मे सीखा और अब गोवा के कई घरों और रेस्टोरेन्ट मे इस तकनीक का सफल प्रयोग कर रहे है।

पराग कहते है कि “इन सब समस्याओं के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ साथ आज जो समस्या हमारे सामने है उसका समाधान करना भी उतना ही आवश्यक है। जागरूकता जहाँ नयी पीढ़ी के लिए आवश्यक है वही इन समास्याओं का समाधान करना हमारी पीढ़ी कि ज़िम्मेदारी है। क्योंकि अगर हम इन समस्याओं का हल आज नहीं खोजेंगे तो यह पर्यावरण ऐसे ही नष्ट हो जाएगा और आने वाली नयी पीढ़ी के लिए जागरूकता का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम इनका हल खोजे और नयी पीढ़ी को जागरूक करते हुए इस प्रकृति को सहेज कर उन्हे सौंपे। और मेरा यही लक्ष्य है कि मै इनका हल खोजते हुए अपनी आजीविका का वहन कर सकूं, जिससे रोजगार के नए मॉडल लोगों के सामने आ सकें और उनके मन मे यह दुविधा न रहे कि समाज और पर्यावरण के लिए काम करते हुए कमाई नहीं कि जा सकती है।”

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