अन्वेषक: राघव
व्यवसाय: प्राकृतिक किसान
स्थान: दवानगेरे,कर्नाटक

“हाँ सचमुच! प्राकृतिक प्रणालिया एक उल्लेखनीय फिर से निरंतर चक्र में परिणत करने की नवीनीकृत प्रवृत्ति है। किसानों के रूप में , हम इन चक्रों के साथ काम करते हैं और प्रकृति को खुद पनपने के लिए छोड़ देते है। जब भी जरूरत होगी यह स्वयं धीमा होगा या तेज़ “- राघव

प्राकृतिक कृषि, मानव दखल के हस्तक्षेप से मुक्त पर आधारित है कृषि की एक प्रक्रिया । यह मानव ज्ञान और क्रियाओं द्वारा प्रकृति मे किए गए विनाश को पुनः बहाल करने और मानव के प्रकृति से लिए गए तलाक को पुनः एक सजीव रिश्ते मे बदलने का एक प्रयास है। राघवा जब अपनी युवावस्था मे थे, तब कुछ घटनाओं ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया और उस मोड़ से आगे की निर्जन सड़क पर वे अकेले ही प्रकृति की गोद मे जाने के लिए निकल पड़े। हालांकि शुरुआत मे वे यह सफर उदासी के साथ तय कर रहे थे, क्योंकि उन्हे लग रहा था की यह सफर उनका चुना हुआ नहीं है। वो इस सफर पर धकेल दिये गए है। राघवा जब कॉलेज मे थे तब उन्होने कई उद्यमियों की जीवनियों को पड़ा था और उन्हीं से प्रेरित होकर वे भी एक व्यवसाय करना चाहते थे।

परंतु नियति ने उनके लिए कुछ और ही रास्ता चुन रखा था। या यह कहना बेहतर होगा कि उनका रास्ता उनके कदमों के नीचे ही था पर वो उसे कई और खोज रहे थे। कॉलेज के वक्त ही उनपर पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते खेती को संभालने का बोझ आ गया था। पर अपने बिज़नसमेन के सपने को पूरा करने के लिए उन्होने खेती के साथ-साथ अपना एमबीए भी पूरा किया। पर इसी दौरान उन्होने प्रकृतिक खेती पर एक कार्यशाला मे भाग लिया था। जिससे प्रेरित होकर वे अपने खेत मे इसका प्रयोग करने लगे थे। वो कहते है कि “नारियल के orchard मे नतीजे पाने के लिए आपको 3 साल तक का इंतज़ार करना पड़ता है।

मैंने 1996 मे प्रकृतिक खेती करना शुरू किया था और 1999 मे जब फसल आई तब वो मेरे लिए एक बड़ी विफलता थी। सारे पेड़ पीले पड़ गए थे, फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गयी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था की मुझसे कहाँ गलती हुई थी। अपनी गलती को समझने के लिए मैंने प्रकृतिक खेती पर कई किताबें पढ़ी, कई कार्यशालाओं मे भाग लिया, कई किसानों से मिला। तब मुझे समझ आया की प्रकृतिक खेती सिर्फ खेती करने का एक तरीका मात्र नहीं है। यह अपने आप मे एक जीवनदर्शन है। जो आपको एक स्वस्थ और खुशनुमा जीवन की और अग्रसित करती है। यह जीवन जीने का वो तरीका है जो आपको प्रकृति की शरण मे लेके जाता है। प्रकृति के साथ मिलकर आपको जीना सिखाता है।”

जब उन्हे यह बात पता चली, तब वे उन किसानों से मिले, जिनके पास आधुनिक शिक्षा से प्राप्त डिग्री रूपी कुछ चमकते हुए कागज के टुकड़े थे, फिर भी वे खेती कर रहे थे। उन्होने देखा की वे अपने जीवन से संतुष्ट है और अपने परिवार के साथ खुशी से अपना जीवन यापन कर रहे है। तब उन्हे एहसास हुआ की उन्हे अपने जीवन मे खुश रहने के लिए कृषि ही करनी है और उन्होने व्यवसाय करने का विचार त्यागते हुए कृषि को ही अपना व्यवसाय बनाने का फैसला कर लिया। वो कहते है की “लोग अक्सर प्रकृतिक खेती को “Do nothing farming” कहते है जो की सही नहीं है, प्रकृतिक खेती का उद्देश्य हमारा प्रकृति मे हस्तक्षेप को कम से कम करते हुए, अपने श्रम और समय का उपयोग अपने, अपने परिवार, समाज और प्रकृति की बेहतरी के लिए कार्य करना है। पारंपरिक खेती की तरह इसमे हम किसी भी प्रकार की जुताई, बुवाई, या सिंचाई नहीं करते है। परंतु पहले हमें कुछ समय तक प्रकृति के लिए ऐसा माहौल तैयार करने की जरूरत होती है, जहां हमें यह सब कार्य न करने पड़े। जब हम यह सब कर लेते है तब हमारा बस एक ही काम रहता है वो है, कटाई(harvesting)।

जब मैंने प्रकृतिक कृषि शुरू कि थी तब मैंने यही गलती कि थी की मैंने प्रकृति के लिए वो माहौल तैयार नहीं किया था जहां वो खुल के पनप सकें। मैंने भी इसे Do nothing farming समझ लिया था। परंतु जैसे-जैसे मैं इसे करता गया मैं इसके दर्शन को और गहराई से समझता गया। प्रकृतिक खेती का उद्देश्य बिना लालच किए पहले अपने परिवार का पेट भरना है, अगर प्रकृति आपको आपकी जरूरत से ज्यादा देती है तो पहले उसे अपने समुदाय के साथ बांटना, फिर अगर कुछ बच जाए तो उसे बेचना है। जबकि पारंपरिक खेती मे हम सबकुछ बेचने के लिए ही उगाते है। जो की लालच को बढ़ावा देता है इसीलिए ज्यादा फसल के लालच मे हम कई प्रकार के जहरीले रसायनों का प्रयोग करने लग गए है जो कि हमारे साथ-साथ प्रकृति को भी नुकसान पाहुचा रहा है। अपने आपको और अपने परिवार को प्रकृति के और करीब ले जाने के लिए अब हम अपने जीवन मे ऐसे विकल्पों की तलाश कर रहे है जो की प्रकृति के करीब हो और हम उनसे अपने जीवन को और बेहतर बना सकें। उदाहरण के लिए हम अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते है वो घर पर रहकर ही अपनी प्राकृतिक गति से सीखते है।

हम बीमारी के इलाज के लिए जहाँ तक हो सके घरेलू उपचार करते है और जरूरत पड़े तो आयुर्वेद, होम्योपैथिक तथा प्रकृतिक चिकित्सा का प्रयोग भी करते है। हम अपने खाने मे पुरानी पारंपरिक अनाजों और सब्जियों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करने की कोशिश करते है। अब हम कोशिश कर रहे है की कैसे हमारा घर भी पूरी तरह प्रकृतिक संसाधनों से बना सकें। मैं खुश हूँ की अपने इन प्रयोगों मे मुझे अपने परिवार का पूरा साथ मिल रहा है। क्योंकि हम जो भी करते है वो अपने और अपने परिवार की खुशी के लिए ही करते है। अगर वो ही खुश नहीं है तो हम भी खुश नहीं रह सकते है। और अगर आप तुलना करे तो आप पाएंगे की दूसरे खेतो के वनिस्पत मेरे खेत ऐकांथीका की पैदावार से कई अधिक है। यही नहीं इससे कई और दुर्लभ प्रकार के फल, सब्जियाँ भी अब प्रकट होने लगी है, जिन्हें मैंने कभी उगाया ही नहीं था। आज ऐकांथीका मे अपना एक एको सिस्टम बन गया है जहाँ कई प्रकार के पशु-पक्षी, कीड़े, वनस्पति और मानव साथ मिलकर रह रहे है। और यही हमें करना है, सबके साथ मिलकर रहना है, जब इस सफर पे निकला था तब मैं अकेला था और नाखुश था, पर जब मैंने गौर से देखना शुरू किया तो मैंने पाया की मैं कभी अकेला नहीं था। प्रकृति और प्रकृति मे बसने वाले जीव-जन्तु, मेरा परिवार हमेशा मेरे साथ था और असली खुशी सबके साथ रहने मे ही है। अगर मैं प्रकृतिक खेती को नहीं अपनाता, इसके दर्शन को नहीं समझता तो शायद मैं यह बात कभी समझ नहीं पाता।”

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