अन्वेषक: मधुकरदास
व्यवसाय: जल संरक्षण
स्थान: यावतमल, महाराष्ट्र
यवतमाल जिला अगर भारत मे मशहूर है तो सिर्फ एक बात के लिए, वो हमारे अन्नदाताओं, किसानों की आत्महत्याओं की वजह से। 2,24,000 हेक्टर का जंगल है इस क्षेत्र में। वर्षा भी सामान्य ही होती है, फिर क्या वजह है जो यहाँ का किसान आत्महत्या कर रहा है। खैर किसान की हालत तो पूरे देश मे लगभग एक जैसी ही है। गरीब वो राजस्थान मे भी है, गरीब वो यहाँ पर भी है। फसल की उचित कीमत उसे पंजाब मे भी नहीं मिलती है, और यहाँ पर भी। लागत उसकी महंगी हरयाणा मे भी हो रही है और यही हाल यहाँ पर भी है। यहाँ पर किसानों की आत्महत्याओं की कुछ प्रमुख वजह जो हमारे अगले परिंदे अपने अनुभव से बताते हैं कि यहाँ पर किसान साहूकारों के चंगुल मे बुरी तरह फँसा हुआ है। उसके द्वारा लिए गए कर्ज पर ब्याज बहुत ही अधिक है। सामान्य वर्षा के बावजूद उसके पास सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं है क्योंकि अत्यधिक बोरवेल खोदे जाने की वजह से उसके कुओं मे सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी ही नहीं रहता है। पानी के हालात तो यहाँ इतने बुरे है की जब गाँव मे टैंकर से ही सप्लाई होती है तब पुलिस की निगरानी मे लोगों को पानी बाँटा जाता है। यहाँ पानी की वजह से होने वाली लड़ाई अब आम बात हो गयी है। कुँओं मे पानी इतना नीचे चला गया है की पानी भरते हुए हजारों महिलाओं ने अपनी जान गंवा दी है। हमारे अगले परिंदे का बचपन भी कुछ ऐसी ही हालातों मे गुजरा था। उन्होंने भी कई अन्य लोगों की तरह अपनी मौसी को कुएँ मे गिरकर जान गँवाते हुए देखा था।
एक चरवाहे परिवार मे जन्मे मधुकर दास जी का बचपन भी अपने माता-पिता के साथ भेड़-बकरियों को चराते हुए बिता। जब वो थोड़े बड़े हुए तो पुणे चले गए और लोगों के घर मे टॉयलेट की सफाई का काम करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखी। वो बताते है की जब वे टॉयलेट साफ करते थे तो उन्हें 16 रुपये दिन के मिलते थे। उसी से वे अपनी पढ़ाई और पुणे मे रहने का खर्च चलाते थे। उससे पहले वे कन्स्ट्रकशन साइट पर काम करते जहाँ उन्हे 8 रुपये रोज़ के मिलते थे। इसी तरह से उन्होने अपनी बारहवीं पूरी करी और उसके बाद वे पुणे मे ही एक संस्था से जुड़ गए। जिसमे वे आम लोगों की समस्याओं को लेकर विरोध प्रदर्शन, जुलूस निकालना, धरना देने जैसे काम करते थे।
यह काम करते हुए वे बेहद अच्छे नंबरों से एम॰ए. में पास हो गए। उनके इस अच्छे प्रदर्शन और उनके हालातों को देखते हुए उनके एक टीचर ने उन्हे एक कॉलेज मे प्राध्यापक की नौकरी के लिए सिफ़ारिश कर थी। जब वे नौकरी के लिए आवेदन करने गए तब उनसे दो लाख रुपए की रिश्वत मांगी गयी। उस वक़्त उनके पास घर आने के लिए 200 रुपये भी नहीं थे तो वो दो लाख रुपये कहाँ से लाते। तभी से उन्होने निश्चय कर लिया की अब वो नौकरी कभी नहीं करेंगे। बल्कि कुछ ऐसा काम करेंगे जिससे वो उन लोगों के जीवन-यापन मे मदद कर सके जो उनके जैसे हालातों मे पले-बढ़े है। यही सोचकर उन्होने यवतमाल मे दिलासा नाम से एक संस्था रजिस्टर कराई। शुरुआत में उन्हें मेधा पाटकर और नाना पाटेकर की तरफ से एक फेलोशिप मिली जिसकी मदद से वे लोगों की समस्याओं को लेकर विरोध प्रदर्शन करते थे पर जल्द ही वो इस काम से थक गए और उन्हे इससे लोगों के कोई बदलाव भी आता नज़र नहीं आ रहा था।
उसी समय उन्हें विलास राव सालुंके जिन्हें लोग पानी बाबा के नाम से भी जानते है के साथ कुछ काम करने का मौका मिला। अपनी मौसी की भी मौत उनके जहन मे कहीं ना कहीं बसी हुई थी तब 1998 मे उन्होंने पानी और जीविकापार्जन पर काम करना शुरू किया। उसी वक़्त उनकी मुलाक़ात मंसूर खोरासी से हुई जो पेशे से एक सिविल इंजीनियर थे। उस वक़्त वो भी एक ऐसी जगह, एक ऐसा साथी खोज रहे थे जिसके साथ मिल कर वे इस क्षेत्र की पानी समस्या पर कुछ काम कर सकें। दोनों ने एक साथ मिलकर आज इस क्षेत्र की पानी की समस्या को खत्म तो नहीं किया है पर काफी हद तक कम कर दिया है। इन्होंने साथ मिलकर वर्षाजल को संरक्षित करने और भूमिगत जल के स्तर को बढ़ाने के लिए कई नयी तकनीक विकसित की है और साथ ही कई पुरानी तकनीकों को फिर से पुनर्जीवित किया है। उन्होंने इन तकनीकों को आस-पास के 9 जिलों के 1200 गावों मे इम्प्लीमेंट किया है। साथ ही इन्होंने लोगों को कैश क्रॉप की जगह मल्टी क्रॉप उगाने के लिए प्रोत्साहित किया है जिससे आज किसानो को साल मे से छह महीने लगातार उपज मिलती रहती है। उन्होने अब तक 9000 सेल्फ-हेल्प ग्रुप शुरू किए है जिसके माध्यम से वे अब लघु-उद्योगों और कृषि के 50 करोड़ तक के ऋण बांटे चुके है। जिससे से कई किसानों को साहूकारों से आज़ादी मिल रही है। आज मधुकर जी अपने काम के माध्यम से इस क्षेत्र के 200 युवाओं को प्रत्यक्ष रोजगार उपलब्ध करवा रहे है। और इस युवा शक्ति की बदौलत वे एक लाख से अधिक परिवारों के जीवन मे सकारात्मक बदलाव लेकर आए है। वे कहते है की हमने इस क्षेत्र मे पिछले 20 वर्षों मे कई कार्य किए है पर हालत अब भी बेहद भयावह है। हम अब तक कई किसानों को आत्महत्या करने से बचा चुके है पर अब भी इस क्षेत्र मे हर साल हजारों किसान आत्महत्या कर रहे है। पिछली सारी सरकारों ने इस क्षेत्र की अनदेखी ही की है पर अब जब धीरे-धीरे यहाँ भूमिगत जलस्तर बढ़ने लगा है और नदियाँ पुनर्जीवित होने लगी है तब सरकार को इस क्षेत्र के विकास करने की इच्छा जागृत हुई है। जहाँ कई इंडस्ट्रीज़ डाली जाएगी और किसानों के हक़ का पानी उन्हें दे दिया जाएगा तथा जो किसान अभी थोड़ी बेहतर स्थिति मे पहुँचने लगा है वो पहले से भी बदतर स्थिति मे पहुँच जाएगा।