एक, बचपन में, पढ़ाई के साथ ठेले पर पिताजी के साथ कचौरी और समोसे बनाकर बेचता था, दूसरा घरों में काम करता था। एक अपने पिताजी से खाना बनाना सीख रहा था, दूसरा घरों में काम करते हुए औरतों से। दोनो ने अपने रास्ते खुद बनाने की ठानी। दोनां ने साथ में और अलग-अलग देशभर में यात्राएं की। अपने जुनून की खोज में एक ने जड़ी-बूटी से इलाज, कबाड़ से जुगाड़ जैसी चीज़े करके देखीं, तो दूसरे ने नाटक और खेती करना सीखा। अंत में उन्हानें अपने जुनून को खोजा अपने बचपन में, खाना बनाने में, जिसे वे बचपन से करते आये थे।

यह कहानी हैं सन्नी और मनोज की। इन्होनें उदयपुर में मिलेट्स ऑफ मेवाड़ नाम से एक रेस्टोरेन्ट खोला है। मिलेट्स ऑफ मेवाड़ सिर्फ एक रेस्टोरेन्ट ही नही है। बल्कि यह एक सोच है, एक आंदोलन है, लोगों की सेहत के लिये, हमारे पर्यावरण के लिये। इनका मानना है कि हमारा शरीर एक मन्दिर है, जिसमें हमारी आत्मा बसती है। हमारी आत्मा को ख़ूबसूरत बनाने के लिये इसको सही पोषण देना आवश्यक है। मेवाड़ी में एक कहावत है ”जसो अन्न, वसो मन“। यह कहावत मिलेट्स ऑफ मेवाड़ का आधार स्तंभ है। इनका मानना है कि हम जो खाते हैं वो जल्द ही हमारे दिल, हमारे मन, हमारी भावनाओं और हमारा हिस्सा बन जाता है।

मिलेट्स ऑफ मेवाड़ के साथ काम करते हुए मैनें कई नए व्यंजनांं के बारे जाना, जैसे- रागी टाकोस, कांगणी का पिज्ज़ा, हामो की टिकीया आदि। यहाँ एसे ही प्रयोगों के माध्यम से देशी अनाजों को बढ़ावा दिया जा रहा है। यहॉ मैंने समझा कि फास्ट-फूड के इस ज़माने में हम मैदे से बने पिज्ज़ा, बर्गर आदि खाना पसंद करते हैं। कुछ ही मिनटों में तैयार हो जाने की प्रक्रिया में इनके पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं। मिलेट्स ऑफ मेवाड़ की कोशिश रहती है कि यह अपने मेहमानों को आराम से व पुर्ण रूप से पका हुआ भोजन खिलाएँ जिससे खाने की पौष्टिकता नष्ट न होने पाए व उन्हें संतुलित आहार मिल सके। इसे इन्होनें स्लो फूड का नाम दिया है।

जब मैं मिलेट्स ऑफ मेवाड़ में कांगणी और आलू की टिकीया बना रहा था, तब मुझे एहसास हुआ कि खाना बनाना एक कला है। मैं यह मानता था कि हम खाना ज़िन्दा रहने के लिये खाते हैं। परंतु मैंने यहाँ काम करके तेल रहित पौष्टिक भोजन बनाने का व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त किया। मुझे समझ आया कि खाने में विविधताओं पर हमारे शरीर का विकास और स्वास्थ्य निर्भर करता है। साथ ही यहाँ मेरे कई भ्रम भी दूर हुए, जैसे बिना तेल के भोजन और बिना घी, शक्कर के भी मिठाई बनाई जा सकती है। यहीं मैनें जाना कि हमारे शरीर के लिये आवश्यक वसा और कैल्शियम के लिये नारियल का दूध और काजु का पेस्ट जैसे स्वस्थ विकल्प मौजुद हैं। जो हमारे भोजन में दुग्ध उत्पादों की जगह ले सकते हैं। मिलेट्स ऑफ मेवाड़ इनका प्रयोग करते हुए अपने मेहमानों को श्टमहंदश् खाने का विकल्प दे रहा है।

आज के वैश्विक भोजन तंत्र में हमारे पास खाने के लिये गेहूँ और चावल जैसे बेहद सिमित विकल्प मौजुद हैं। यह ना सिर्फ हमारी सेहत को नुकसान पहुँचा रहे हैं बल्कि हमारे पर्यावरण को भी हानि पहुँचा रहें हैं। इन अनाजों को उगाने के लिये किसानों को बहुत सारे रसायन, कीटनाशक और पानी का प्रयोग करना पड़ता है। यह सीधे तौर पर हमारे लिये व मिट्टी के लिये ज़हर का काम करते हैं।

जबकी देशी अनाज, जिनमें पोषक तत्वों का भण्डार होता है, हमारी सेहत के लिये बेहद फायदेमंद होते हैं। यह हमारे आस-पास के माहौल में रमे-घुले होते हैं और बिना किसी रसायन और कीटनाशक का प्रयोग किये उग जाते हैं। गेहुँ और चावल के मुकाबले इन्हें उगाने के लिये एक चौथाई पानी की ही आवश्यकता होती है। मिलेट्स ऑफ मेवाड़ आधुनिक व्यंजनों मे इन अनाजों का प्रयोग करते हुए लोगों की सेहत और पर्यावरण को बचाने का काम कर रहें है।

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