अन्वेषक: अंकुर रॉय चौधरी और वर्तिका पोद्दार
व्यवसाय: नाटय कलाकार
स्थान: कोलकाता, पश्चिम बंगाल
सामाजिक अन्याय एक ऐसा विषय है जिस पर चर्चा करे बिना स्थायी विकास की बात करने के कोई मायने नहीं है। हमारे देश का सामाजिक ताना-बाना बेहद जटिल है परंतु उसे समझे बिना हम पर्यावरण संरक्षण की जो बात पिछले 10 महीनों से 52 परिंदे के जरिये कर रहे है वो अधूरी है। समाज के हर स्तर पर आपको भेदभाव और पीड़ित वर्ग का संघर्ष देखने को मिल जाएगा। वो ब्राह्मण-दलित वर्ग के बीच का संघर्ष हो सकता है या फिर व्यापारी और मजदूर वर्ग या फिर स्त्री-पुरुष के बीच का संघर्ष, हर संघर्ष की सैकड़ों परते है और सभी परतों को समझे बिना और सभी वर्गों को पर्यावरण संरक्षण कि मुहिम से जोड़े बिना हमारी पर्यावरण संरक्षण कि यह मुहिम अधूरी है। इस अधूरी मुहिम को अपने स्तर पर पूरा करने कि कोशिश कोलकाता से हमारे अगले परिंदे अंकुर रॉय चौधरी और वर्तिका पोद्दार नाटकों के माध्यम से पिछले 8 सालों से कर रहे है।
अंकुर कहते है कि मेरे चाचा और भाई पेशेवर नाटय कलाकार थे, मैं उन्हे देखते हुए बड़ा हुआ और उन्ही को देखते-देखते मेरी नाटकों मे रुचि बढ़ने लगी थी। मैंने अपने स्कूल के समय से ही नाटकों मे भाग लेना शुरू कर दिया था, जो मेरी विश्वविद्यालय कि पढ़ाई के वक़्त भी जारी रहा। जब मैं विश्वविद्यालय मे पढ़ रहा था उस दौरान मैं वामपंथी राजनीति मे भाग लेने लग गया था। हालांकि समय के साथ मेरे इस विचारधारा से मेरे कुछ मतभेद भी रहे है, पर मैं आज जो भी कर रहा हूँ उसका आधार वामपंथ विचारधारा है। वामपंथी विचारधारा को समझते हुए मैं हमारे देश मे विभिन्न स्तरों पर हो रहे सामाजिक भेदभाव और शोषण को गहराई से समझ पाया हूँ। जब मै वामपंथ राजनीति मे सक्रिय था और उनके साथ मिलकर समाज के विभिन्न वर्गों पर हो रहे अन्याय को नाटक के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहा था, तब मुझे लग रहा था कि हमारे मुद्दे कहीं न कहीं एक छोटे से सभागार तक सीमित होकर रह गए है।
मुझे लग रहा था कि इन नाटकों को उन लोगों तक पहुंचना बहुत जरूरी है जिनके मुद्दे हम इनके माध्यम से प्रस्तुत कर रहे है। तब मैं इस खोज पर निकला जहां मैं इन नाटकों को आम लोगो के बीच लेकर जा सकूँ। उसी समय मेरी मुलाक़ात वर्तिका से हुई जो खुद एक बेहद धनी परिवार से संबंध रखती है पर उन्हे कहीं न कहीं उस तरह के जीवन से संतुष्टि नहीं मिल पा रही थी। वे शहर को एक अलग नज़र से देखना चाहती थी। वो जानना चाहती थी एक आम शहरी मजदूर वर्ग कि नज़र से शहर कैसा दिखता है, कैसे उनके बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया कराई जा सकती है। वे बस्ती के बच्चों के लिए एक ऐसी जगह बनाना चाहती थी जहाँ वे स्कूल से बाहर विभिन्न कलाओं के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर सकें, साथ ही वे उन लोगों के जीवन को करीब से अनुभव करते हुए उनके साथ खुद सीख सकें। इसी सोच के साथ उसने स्वभाव कि शुरुआत भी कि थी। मैं भी उसके साथ जुड़कर बच्चों को नाटक सीखाने का काम करने लगा। इसी दौरान जो लोग हमारे साथ जुड़े हुए थे वे अपनी अन्य प्राथमिकता कि वजह से हमसे अलग होते गए और नाटक स्वभाव की मुख्य गतिविधि बनती गयी। आज हम स्वभाव नाटक दल के नाम से जाने जाते है जो पूरे देश मे मजदूरो, किसानों, युवाओं, व समाज के अन्य पिछड़े वर्गों के साथ जुड़कर उनपर हो रहे विभिन्न सामाजिक अन्याय को उन्ही के माध्यम से इन लोगों के बीच मे पहुंचाते है।
स्वभाव नाटक दल के अंतर्गत पिछले कुछ सालों में अंकुर और वर्तिका ने पूरे देश भर मे विस्थापन, प्रवसन, सस्ते श्रम, मजदूरों पर होने वाले विभिन्न तरह के अत्याचार आदि कई विषयों को नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से लोगों के बीच पहुंचाया। 2013 में इन्होने एक नाटक लिखा था मी. इंडिया, इस नाटक को लेकर उन्होने देश के पाँच राज्यों मे 30 से अधिक प्रदर्शन किए है जहाँ उन्होने विस्थापन कि पूरी प्रक्रिया को खोलकर लोगों को दिखाने कि कोशिश कि थी। उसी तरह अभी वे गुड़गांव मे मारुति के कारखाने मे काम करने वाले मजदूरो के साथ काम कर रहे है, जहां कई सालो से उनके ऊपर होने वाले अत्याचार के खिलाफ संघर्ष कर रहे है, तो दूसरी तरफ शहरीकरण की समस्या को लेकर वे जयपुर मे कुछ युवाओं के साथ काम कर रहे है।
वो कहते है कि इन दिनों पूरे विश्व मे पर्यावरण पर मंडराये हुए खतरों पर गंभीरता से चर्चा हो रही है, लोग जागरूक भी हो रहे और धीरे-धीरे इस समस्या के समाधान के लिए कई कदम भी उठा रहे है। पर मैं जानना चाहता हूँ कि जिन समाधानों कि हम सब बात कर रहे है उसमे शहर कि कच्ची बस्ती और सड़क के किनारे फूटपाथ पर सोने वाले लोगों कि जगह कहाँ है। लोग किसानों के मुद्दे पर आवाज़ उठा रहे है जो कि होना भी चाहिए पर हमे यह भी सोचना होगा कि ये लोग जो आज शहर कि गंदी बस्तियो मे रहकर अपने श्रम को बेहद सस्ते दाम मे बेचकर जैसे-तैसे अपना पेट भरने कि कोशिश कर रहे है, ये लोग भी कुछ समय पहले किसान, मछुआरे, लोहार, कुम्हार आदि हुनरमंद लोग थे। जो प्रकृति के साथ मिलकर गांवो और कुछ नहीं तो एक साफ-सुथरी और गैरतमंद जिंदगी जी रहे थे। ऐसा नहीं है कि गांवो मे इन लोगो को सामाजिक अन्याय को शिकार नहीं होना पड़ता था। गांवो मे भी किसी न किसी तरीकों से इनका शोषण होता था परन्तु फिर भी इनकी ज़िंदगी आज से कहीं बेहतर थी। वहीं दूसरी तरफ हमारी सरकार कि नीतियाँ भी सिर्फ व्यापारियों को ज्यादा से ज्यादा मुनाफा दिलाने के लिए ही बनाई जाती है।
हमारी सरकार कि आज से नहीं आज़ादी के समय से यही सोच है कि कैसे इन लोगों कि ज़मीन छीनो, इनका पानी छीनो इनका खाना छीनो उसके बाद इन्ही कि ज़मीनों पर कारखाने लगाकर उन्ही से सस्ते दाम पर मजदूरी करवाओं और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाओ। ऐसी हालत मे आप इन लोगों से sustainability कि बात कैसे कर सकते है। शहर कि इन बस्तियों मे रहने वाले लोगों का खाना ही पूरी तरह प्लास्टिक मे बंद आता है। दो रुपये कि चाय पत्ती, पाँच रुपये कि शक्कर, दस रूपए का तेल, दस रुपये का आटा सबकुछ तो प्लास्टिक मे बंद मिलता है इनको। इनकी ज़िंदगी अपने आप मे प्लास्टिक के पाउच मे बंद है ऐसे हालातों मे कैसे हम इनकी समस्याओं को हल किए बिना sustainability की बात कर सकते हो। मेरा यहीं कहना है की जब तक हम इनको इस मुहिम मे शामिल नहीं करेंगे, इनकी समस्याओं का हल नहीं करेंगे, हमारे पर्यावरण को बचाने की इस लड़ाई मे हम कहीं नहीं पहुँच पाएंगे। यह तभी हो सकता जब लोगों को इनकी समस्या की गहराई का आभास हो क्योंकि इनकी समस्या सिर्फ गरीबी नहीं है बल्कि यह पूरा सामाजिक ढाँचा है, इसे बदले बिना ये लोग इस मुहिम मे शामिल नहीं हो सकते है। अपनी इसी मुहिम को आगे ले जाने के लिए अंकुर और वर्तिका चाहते है की वे चाय बगानों मे मजदूरी करने वाले लोगों के बच्चों के लिए एक स्कूल खोले जहां नाटक को केंद्र मे रखकर उन बच्चों को शिक्षा दी जाएगी। वर्तिका कहती है की ये वो बच्चे है जिन्हें उनके माँ-बाप दो वक़्त की रोटी भी उपलब्ध नहीं करा सकते है। चाय बागान मे काम करने वाले मजदूरों के हालत इतने ज़्यादा खराब है की वे अपने बच्चे बेचने के लिए मजबूर है। ऐसे मे हम चाहते है की हम इनमे से कम से कम 10 बच्चो के लिए किसी गाँव मे एक स्कूल खोल सके जहाँ यह नाटक के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर सकें और कुछ सालों बाद नाटकों के ही माध्यम से इनसे जुड़े सामाजिक मुद्दों पर काम कर सकें और हमारी एक अपील है की अगर कोई भी व्यक्ति अगर इस काम मे हमारी किसी भी प्रकार से मदद करना चाहता है तो कृपया हमसे संपर्क करें।