अन्वेषक: प्रिया मुथुकुमार
व्यवसाय: कथावाचक
स्थान: चेन्नई

आदिकाल से मनुष्य का कहानियों के साथ अनूठा सम्बंध रहा है। कहानी कहना एक कला है। इतिहास के पन्नों को अगर हम पलटकर देखें तो, हमारे पूर्वज चित्रों के माध्यम से प्राचीन गुफाओं मे हमारे लिए कई कहानियाँ कहकर गए है। एक तरफ जहाँ मनुष्य प्रजाति के क्रमिक विकास मे इस कला ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, वहीं दूसरी तरफ मनुष्य ने अपने विकास के साथ इस कला को भी विकसित किया है। कह सकते है की मनुष्य प्रजाति का विकास और कहानी कहने की कला एक-दूसरे के पूरक है। एक के विकास के बिना दूसरे का विकास संभव नहीं है। दूसरे शब्दों मे कहा जाए तो यह कला हमारे DNA मे समाई हुई है। क्योंकि मनुष्य ही एक ऐसी प्रजाति है जो यह कला जानती है। जब भी यह कहानियाँ और कहानी कहने के तरीके बदले, हमारे जीने के तरीकों मे भी बदलाव आता गया। उदाहरण के तौर पर हम आज की कहानियों को देखे तो हम पाएंगे की ज़्यादातर कहानियां हमारे पास आज टेलिविजन, सिनेमा और विज्ञापन के माध्यम से आ रही है।

जिनमे आध्यात्मिक मूल्यों की जगह न के बराबर है। ये कहानियाँ हमारी भौतिक आकांक्षाओं को जाग्रत करती है, उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा देती है, हीन भावना को जन्म देती है और हमें अपनी जड़ों से दूर करती है। वही दूसरी तरफ जो ये कहानियाँ कह रहे है, उनकी हम अवतारों के रूप मे पूजा करते है, उनसे प्रभावित होकर उनके जैसी जीवनशैली अपनाने की कोशिश करने लगते है। हकीकत मे कहानियों मे छिपे ज्ञान और मूल्य इन तथाकथित अवतारों की छाया तले कहीं गुम हो जाते है। कहानियों की यह दुर्दशा आधुनिक काल मे नहीं हुई है, इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब हमने पुराण कहना शुरू किया था और ideal worship को जन्म दिया था। हक़ीकत मे कहानियाँ समाज का आईना होनी चाहिए और कहानी कहने वाला ऐसा होना चाहिए जो बिना किसी पक्षपात के निडरता से समाज को वो आईना दिखा सके।

हमारी अगली कहानी ऐसे ही एक कथावाचक की है, जो अपनी कहानियों के माध्यम से समाज को आईना दिखाने की कोशिश कर रही है और उनमे छिपे आध्यात्मिक मूल्यों के माध्यम से बच्चों को पर्यावरण के बारे मे जागरूक कर रही है।

प्रिया मुथुकुमार का जन्म चेन्नई के एक मध्यांवर्गीय परिवार मे हुआ था। उनके दादाजी का सपना था की वे एक डॉक्टर बने। परंतु उनके पिताजी उन्हे हमेशा से ही स्कूल मे होने वाली गतिविधियों में भाग लेने के लिए बढ़ावा देते रहते थे। वे कहती है कि “पिताजी ने मुझे हमेशा एक ही बात कहीं, जो भी जिस चीज़ मे भी मन करे उसमे भाग लो, असफल होने से मत डरो। उनकी दिये हुए इस मंत्र का प्रभाव मैं आज भी अपने जीवन मे देख सकती हूँ और आज जो भी मैं कर रही हूँ वो इसी मंत्र के कारण कर रही हूँ।”

खैर दादाजी का सपना पूरा करने के लिए उन्होने कोशिश भी की परंतु उचित अंक न मिलने के कारण उन्हे मेडिकल कॉलेज मे दाखिला नहीं मिला, तब उन्होने फार्मेसी मे अपना स्नातक पूरा किया। कॉलेज के वक़्त ही उन्हे पता चल गया था, कि इस क्षेत्र मे उन दिनों पर्याप्त नौकरियाँ उपलब्ध नहीं हैं। स्नातक के बाद उन्होने एक विमानपत्तन कंपनी के लिए कुछ समय काम किया। फिर जैसा कि हमारे में समाज होता आया है, लड़की बडी हो रही है, उसकी शादी करनी है, उनकी भी शादी हो गयी। शादी के बाद उन्होने एक राष्ट्रीय स्तर के समाचार चैनल के लिए न्यूज़ एंकर के रूप मे कुछ समय के लिए काम किया। जब उन्होने एक बेटी को जन्म दिया और जब वो स्कूल जाने लगी तब उनके जीवन मे एक महत्वपूर्ण मोड आया। उनकी बेटी के स्कूल मे उन्हे एक अध्यापक के रूप मे काम करने का प्रस्ताव मिला। आरंभ मे वे इस प्रस्ताव को लेकर संशय मे थी। परंतु जब उन्होने इस प्रस्ताव को स्वीकारा तब वे शिक्षा और उससे जुड़े दर्शन को गहराई से समझने कि कोशिश करने लगी। वे इस बारे मे ज्यादा -से-ज्यादा से पढ़ने लगी। सात वर्षों तक वहाँ काम करने के बाद उन्हे लगा कि शिक्षा का असली उद्देश्य बच्चों को समाज के प्रति जिम्मेदार बनाना है। उन्हे जागरूक करना है जिससे वे अपनी जिम्मेदारिया बेहतर तरीके से निभा सकें। उसी दौरान वे बेंगलुरु मे पर्यावरण प्रदूषण कि समस्याओं को भी समझ रही थी। तब उन्होने बच्चों के लिए कई कार्यशालाएँ विकसित की। ऐसी ही एक कार्यशाला के दौरान जब वे बच्चों का ध्यान आकर्षित करने मे असफल रही और इस वजह से वे बेहद दुखी मन से घर लौटी तब उन्होने कहानियों को अपनी कार्यशालाओं मे शामिल करना शुरू किया।

कहानियों के साथ काम करते हुए उन्हे एहसास हुआ कि कहानियाँ विचारों को हस्तांतरित करने का बेहद ताकतवर माध्यम है। वे कहती है कि “कहानियाँ कहना स्वाभाविक तौर पर विश्व कि सभी संस्कृतियों का अभिन्न अंग रहा है। वे लोगों को दुनिया के अनुभवों से वाकिफ करवाने मे मदद करती है। कहानियाँ हमारी यादों, हमारे अनुभवों को एक स्वरूप प्रदान करती है, जिसके माध्यम से हम नए विचारों, नयी संस्कृतियों और बेहतर समाज को जन्म देने के लिए संवाद स्थापित कर सकते है। कहानियाँ हमे, हमारे भीतर कि गहराई मे लेकर जाती है, जहाँ हम अपने अनुभवों परखकर समाज के प्रति बेहतर समझ विकसित कर सकते है। इसीलिए कहानियाँ कहना और बेहतर कहानियाँ कहना मानव समाज को बचाए रखने के लिए आवश्यक है, क्योंकि कहानियों के माध्यम से हम जीवन को समझते हैं और हम उनके बिना नहीं रह सकते हैं।”

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