अन्वेषक: रोहित जैन
व्यवसाय: जैविक खेती
स्थान: उदयपुर,राजस्थान

हमें बचपन से बताया जाता है कि हमें नागरिकों और पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर जीना चाहिए परंतु, बहुत कम ऐसे लोग है जो इस तरह की जीवनशैली को जी रहे हैं। मेरा यह प्रयोग ऐसे लोगों की कहानियों को, जो इस तरह का जीवन जी रहे है, समझने का एक प्रयास है। इसी तरह की एक कहानी को समझने का सुनहरा अवसर मुझे अपनी उदयपुर यात्रा के दौरान प्राप्त हुआ।

यह कहानी है रोहित जैन की, गाँव मे जन्मे, उदयपुर और पुणे से शिक्षा प्राप्त करने वाले रोहित जैन शैक्षणिक रूप से IT पेशेवर है। पढाई के समय से ही उनका रुझान किसानों और ग्रामीणों का शहर कि ओर पलायन जैसी समस्याओं पर होने लगा था शिक्षा पूरी करने के पश्चात बड़ी कंपनी से मिले नौकरी के सुनहरे अवसर को ठुकराकर इन्होने एक वर्ष का वक़्त स्वयं को खोजने मे लगाया। इस एक वर्ष के दौरान इन्होने ग्रामीण भारत मे रहते हुए विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के साथ स्वयं सेवी के रूप मे काम किया। इस दौरान इन्होने ग्रामीण भारत के आधार, कृषि के व्यावहारिक ज्ञान को प्राप्त करते हुए उससे जुड़ी समस्याओं का गहनता से अध्ययन किया। यही से इनके भीतर गावों और कृषि के लिए प्रेम का जन्म हुआ। अपने इसी प्रेम को आधार बनाकर इन्होने चार वर्ष पूर्व “Banyan Roots” की नींव रखी, जो जैविक खेती के माध्यम से उपभोक्ताओं की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा कर रही है।

पढ़ाई के दिनों मे यह अक्सर अपने कॉलेज के पीछे झुग्गी बस्ती मे गावों से पलायन किये हुए किसानों और ग्रामीणों को गंदगी मे जीवनयापन करते हुए देखा करते थे। यहीं से उनके मन मे सवाल उठने प्रारम्भ हुए, कि ऐसी क्या मजबूरी है जो यह लोग प्रकृतिक और साफ-सुथरी जिंदगी को छोड़कर इस गंदगी मे अपना जीवन बीता रहे हैं। अपने इन्ही सवालों के जवाब की खोज के लिए इन्होने उस बस्ती मे बच्चों की शिक्षा पर काम करना प्रारम्भ कर दिया। यहाँ पर काम करते हुए इन्हे लोगों के जीवन मे गहराई से झाँकने का मौका मिला और इन्होने पाया कि आज के इस के युग मे किसान के लिए लिए खेती करना लगभग नामुमकिन हो गया है। वो कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है। इसी कारण वो शहर की चकाचौंध भरी ज़िंदगी के प्रति आकर्षित हो रहा है।

पढ़ाई के दिनों मे यह अक्सर अपने कॉलेज के पीछे झुग्गी बस्ती मे गावों से पलायन किये हुए किसानों और ग्रामीणों को गंदगी मे जीवनयापन करते हुए देखा करते थे। यहीं से उनके मन मे सवाल उठने प्रारम्भ हुए, कि ऐसी क्या मजबूरी है जो यह लोग प्रकृतिक और साफ-सुथरी जिंदगी को छोड़कर इस गंदगी मे अपना जीवन बीता रहे हैं। अपने इन्ही सवालों के जवाब की खोज के लिए इन्होने उस बस्ती मे बच्चों की शिक्षा पर काम करना प्रारम्भ कर दिया। यहाँ पर काम करते हुए इन्हे लोगों के जीवन मे गहराई से झाँकने का मौका मिला और इन्होने पाया कि आज के इस के युग मे किसान के लिए लिए खेती करना लगभग नामुमकिन हो गया है। वो कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है। इसी कारण वो शहर की चकाचौंध भरी ज़िंदगी के प्रति आकर्षित हो रहा है।

इस वक़्त तक उन्हे नहीं पता था कि वो क्या कर सकते है। पर उनके पुराने अनुभव उन्हे अपनी इस ख़ोज मे उत्तरी गुजरात के एक आदिवासी गाँव तक ले गए जहाँ रहकर वे आदिवासी बच्चों को पढ़ाने का कार्य कर रहे थे। रोहित का कहना है कि “इस अवसर ने न सिर्फ स्वयं को खोजने मे उनकी मदद की अपितु इसके माध्यम से वे गाँव के लोगों के जीवन को और गहराई से समझ पाये।” यहाँ पर रहकर जब उन्होने पारंपरिक तरीके से उपजा भोजन खाया तब उन्हे एहसास हुआ कि शहर के खाने मे और यहाँ के खाने मे बेहद अंतर है। उनका मानना है कि आज हमारा खाने मे न सिर्फ स्वाद चला गया है बल्कि वो अपनी मौलिकता भी खोता जा रहा है। उन्हे समझ आया कि गावों कि समस्या शिक्षा की कमी नहीं है। उनके अनुसार ग्रामीण लोगों की समस्या उनका लुप्त होता ज्ञान है। आज पारंपरिक बीज और खेती के तरीके लुप्त होने के कगार पर है। उन्होने देखा कि ग्रामीण लोग लालच की वजह से अपनी जमीने शहरी लोगों को बेच रहे है। उनका प्रकृति से दूर होते जाना ही उनके विनाश का कारण बन रहा हैं। रोहित के अनुसार यह एक ऐसी समस्या है जिसके बारे मे ग्रामीणों को ही नहीं बल्कि शहरी लोगों को भी गहराई से सोचने कि आवश्यकता है।
उनके अनुभवों के आधार पर वह कहते है कि “आज ना तो किसान खुश है और ना ही प्रकृति, और उपभोक्ता इस बात से अनभिज्ञ है कि वो क्या खा रहे हैं।”

तब इन्होने निर्णय लिया कि वे वहाँ रहकर पारंपरिक खेती के व्याहवाहरिक ज्ञान को सीखेंगे और उसे सहेजने का काम करेंगे। यहीं से ही उन्हे एक ऐसे व्यापारिक मॉडल विकसित करने कि प्रेरणा मिली जिसके माध्यम से वे पारंपरिक बीज और खेती के तरीकों को फिर से मुख्यधारा मे लेकर आ सकें।

“उनका सपना है कि वे उदयपुर शहर को पूर्ण रूप से विषाक्त मुक्त बना सकें। और इसके लिए पर्यावरण के प्रति जागरूकता का होना आवश्यक है क्योंकि इसके बिना बदलाव असंभव है। रोहित का कहना है कि “आज, लोगों की सोच बेहद संकुचित हो चुकी है, वे अचेतन मे जी रहे हैं। मेरे अनुभवों के आधार पर हमें लोगों के साथ पर्यावरण के समक्ष खड़ी चुनौतियों कि कहानियाँ और अनुभव लोगों से बाँटने पड़ेगे और उनके सामने वैकल्पिक समाधान देने होंगे। तब जाकर वे इन समस्याओं से जुड़ पाएंगे अपने स्तर पर समाधान ख़ोज पाएंगे।”

आप रोहित जैन से निम्न पते पर संपर्क कर सकते है:
रोहित जैन
Banyan Roots
33, पंचवटी, उदयपुर,
+91-9783223520
www.banyanroots.in
https://www.facebook.com/BanyanRootsOrganic

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