अन्वेषक: गिरिजा और आनंद

व्यवसाय: प्रकृति हस्तशिल्पकार

स्थान: तिरुनेल्वेलि

एक छोटे शहर के आम मध्यमवर्गीय परिवार की तरह ही गिरिजा और आनंद के सपने भी बेहद आम थे। वैसे आनंद को बचपन से ही यात्रा करना, प्रकृति के बीच मे रहना, नयी चीज़ें सीखने का बेहद शौक था। उनका यह शौक शादी के बाद भी बरकरार रहा। उनकी खुशकिस्मती ही थी की उन्हें जीवनसाथी भी उनके विचारों को समझने वाला और उनका हर कदम पर साथ देने वाला मिला। आनंद जहाँ एक इंटीरियर डिज़ाइनर थे वही गिरिजा एक बैंक मे सहायक प्रबन्धक थी। शादी के कुछ समय बाद ही गिरिजा का स्थानान्तरण मदुरै से तिरुनेल्वेलि हो गया। इस दौरान आनंद जब भी गिरिजा से मिलने तिरुनेल्वेलि जाते, वहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य मे खो जाते। वे वहाँ के नैसर्गिक सौंदर्य से इतना प्रभावित हो गए थे की उन्होने वहीं पर बसने और कुछ काम शुरू करने का निश्चय कर लिया। कुछ समय बाद उन्होने तिरुनेल्वेलि मे सोने की दस्तकारी का काम शुरू कर दिया। साथ ही उन्हे जब भी मौका मिलता था वे किसी न किसी जगह पर यात्रा पर जाते रहते थे। अपनी ऐसी ही एक यात्रा के दौरान उन्हे एक ऑर्गनिक साइंटिस्ट और प्रकृतिक कृषक नमलवार से मिलने और उनके फार्म पर जाने का मौका मिला। इस मौके ने उनके जीवन को एक नया मोड, एक नयी दिशा प्रदान की। वे नमलवार के जीवन दर्शन से इतने ज्यादा प्रभावित हुए की उन्होने अपने जीवन को प्रकृति के साथ मिलकर जीने की दिशा मे अपने कदम अग्रसर कर दिये। गिरिजा ने अपनी बैंक की नौकरी छोड़ अपने परिवार की देखबाल का निर्णय लिया, वही आनंद ने अपने हाथ के हुनर को प्रकृति के साथ जोड़ने का निर्णय लिया। तब दोनों ने मिलकर अपने बेटे कविन के नाम पर कविन आर्ट गैलरी की स्थापना की।

आनंद कहते है की दक्षिण भारत के इस हिस्से मे हम कम से कम दो नारियल प्रतिदिन अपने घर मे प्रयोग मे लेते है। उनका प्रयोग करने के बाद हम नारियल के खोल को ऐसे ही फेंक देते है। मैंने सोचा क्यो ना इसी का प्रयोग करके कुछ बनाया जाए। सबसे पहले मैंने कुछ आभूषण जैसे एयरिंग, लॉकेट आदि बनाए। फिर धीरे-धीरे इसमे मैंने और प्रयोग करते हुए कई हस्तशिल्प का निर्माण करना शुरू किया। अब हम इसमे कई सारे नए प्रयोग करते हुए लैम्प शेड्स, सजावट के समान, पेंटिंग्स, खिलौने आदि बनाने लगे है। इसी के साथ हम कविन आर्ट गैलरी के अंतर्गत तमिलनाडू मे विभिन्न कार्यक्रमो के लिए स्टेज डेकोरेशन का भी काम करते है। स्टेज डेकोरेशन के लिए पूरी तरह प्रकृतिक संसाधनों का प्रयोग करते है और हमारी कोशिश रहती है की सारे संसाधन जो है वो कार्यक्रम के स्थान के 5 किलोमीटर के दायरे से ही एकत्रित किए जाए, जिससे हम स्थानीय अर्थव्यवस्था को और मजबूत कर सकें।

साथ ही ये सारे चूंकि प्रकृतिक होते है इस वजह से कार्यक्रम के पश्चात प्रकृति को कोई भी हानि पहुंचाए बिना सहजता से उनका निस्तांतरण भी कर सकते है। हमारा उद्देश्य है की इस कला को ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच पहुंचाया जाए, ताकि हम अपने जीवन मे प्रकृतिक संसाधनों से बनी वस्तुओं का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर सके|

इनके प्रयोग से हम खनन की समस्या का भी कुछ हद तक समाधान कर पाएंगे ,जैसे की हम विभिन्न तरह के आभूषण, बर्तन आदि सिर्फ नारियल के खोल तथा लकड़ी से बनाते है जबकि जिन आभूषणों और बर्तनों का हम प्रयोग करते है उसके लिए हमे धरती का सीना चीर कर उसे लहूलुहान करना पड़ता है।”

गिरिजा आगे जोड़ते हुए कहती है कि “ अब हम सोच रहे है कि कैसे इस कला मे यहाँ के स्थानीय गाँव के लोगों को पारंगत किया जाए। यहाँ के स्थानीय लोग या तो शहर मे मजदूरी करते है या बीड़ी कि फैक्ट्री मे काम करते है, दोनों ही हालातों मे उनका जीवन किसी नर्क से कम नहीं है। एक तरफ जहाँ उन्हे अपने परिवार से दूर शहर कि गंदी बस्तियों मे रहना पड़ता है तो वहीं दूसरी तरफ बीड़ी फैक्ट्री मे काम करने से उनकी सेहत पर प्रतिकूल असर साफ देखने को मिलता है। ऐसे मे अगर वो इस कला को सीख ले तो अपने घर पर बैठकर ही वे इस काम को कर सकते है। इसके लिए उन्हे किसी प्रकार का आर्थिक निवेश भी नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि इन हस्तशिल्प को बनाने के लिए जो कच्चा माल चाहिए वो उनके दैनिक जीवन का ही हिस्सा है और अगर वो दिन में 4-5 घंटे इस काम को करते है तो आसानी से दो हस्तशिल्प बना सकते है | जिनका बाज़ार मूल्य कम से कम पाँच सौ रुपये तक आता है। इसके लिए हम बहुत जल्द कविन आर्ट गैलरी के अंतर्गत एक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने वाले है जिससे गाँव के लोगों को स्थानीय स्तर पर स्वस्थ और सुरक्षित रोजगार मिल सकें।”

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