अन्वेषक: खामीश खान
व्यवसाय: स्थाई कृषि
स्थान: जैसलमेर,राजस्थान

बाड़मेर जिले के छोटे से गाँव मे पले-बढ़े खमीशा खान का बचपन आम बच्चों जैसा बिलकुल नहीं था। जब वो दस वर्ष के थे तब उन्हे लकवा हो गया था। जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई छूट गयी और एक साल तक बिस्तर पर ही उनका ज़्यादातर समय बीता। वो बताते है की “जिस दिन उन्हे लकवा हुआ था उससे कुछ ही दिन पहले उन्होंने अपने घर के आँगन मे दो पौधे लगाए थे और बीमारी के वक़्त वो पौधे ही मेरे दोस्त थे। मैं ज़्यादातर उनको देखते हुए ही अपना समय व्यतीत करता था। मेरे अब्बा अक्सर मुझे बताते थे की पेड़-पौधे हमारे दोस्त है। वे हमे बहुत कुछ देते है जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक है। उस एक साल के दौरान मैंने उनको अपनी आंखो के सामने बिना किसी सहारे के बढ़ते हुए देखा। तब मैं सोचने लगा की यह हमसे बिना मांगे हमे इतना कुछ दे देते है और जीवन भर हमारे साथ रहते है। हमारा जीवन इनके साथ शुरू होता है और अंत भी इनके साथ ही होता है। इनसे ज्यादा हमारा कोई सच्चा साथी नहीं हो सकता है और तभी से मुझे इन पौधों से प्यार हो गया।”

उस दौरान उन्हे अपनी बीमारी की वजह से अपने रिश्तेदारों और भाई बहनो के ताने सुनने पढ़ते थे। जब वो थोड़े ठीक हुए तो इन तानों से तंग आकार एक दिन वो घर से भागकर जैसलमर आ गए। यहाँ आकर वे एक चाय की दुकान पर ग्लास धोने का काम करने लगे। वे बताते है उस वक़्त रात को ठंड से बचने के लिए वे शक्कर की बोरी के अंदर सोते थे। और यही पर ही विदेशी पर्यटकों के साथ रहकर उन्होने इंग्लिश सीखी और फिर वे एक टूरिस्ट गाईड का काम करने लगे। लेकिन अक्सर उन्हे अपने गाँव की मिट्टी की और उन पौधों की याद आती रहती थी। इसलिए उन्होने गाँव मे जाकर एक कपड़े की दुकान खोल ली। सब कुछ ठीक चल रहा था पर एक दिन रेगिस्तान मे एक बड़ी घटना घटी और रेत के इस समुंदर मे हर तरफ पानी ही पानी हो गया।

उस बाढ़ मे उनका सब कुछ बह गया। उन्होने फिर एक नयी शुरुआत करते हुए जैसलमेर मे एक रैस्टौरेंट खोला जिसे उन्होने अपने पौधों के प्यार के चलते उसे पौधों से सजाया था। उस दौरान उनकी मुलाक़ात एक औस्ट्रालियाइ महिला रोसी जॉर्डन से हुई जो उनके पौधों से प्रेम के चलते उनसे बेहद प्रभावित हुई। उसने उन्हे परमाकल्चर कोर्स के बारे मे बताया। उन्होने बताया की कैसे इसके इसके जरिये हम ग्लोबल वार्मिंग से लड़ सकते है। उसने उन्हे समझाया की रेगिस्तान मे वो बाढ़ भी ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा थी। अगर वे इस कोर्स को कर लेते है तो उसके माध्यम से कई ज़िंदगियों को संवार सकते है। इस कोर्स के लिए रोसी ने उन्हे तंज़ानिया भेजा और उनका सारा खर्चा भी खुद ही वहन किया।

परमाकल्चर के कोर्स के दौरान उन्हे समझ आया की ग्लोबल वार्मिंग की वजह से धरती गरम हो रही है और धरती को ठंडा करने का प्राकृतिक उपाय ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाना है। वे कहते है की “पर सिर्फ खड्डे खोद के कोई वृक्ष लगाने से कुछ नहीं होगा। हम जिस जगह रह रहे है वहाँ के वातावरण के अनुकूल वृक्ष लगाने होंगे। जिससे न सिर्फ मानव को अपितु वहाँ के वन्य-जीवन को भी संरक्षित किया जा सकता है। आप अनुमान लगा सकते हैं, दुनिया के इस हिस्से में जीवन हमेशा आसान नहीं है। फिर भी अब तक, हम जीवित है और यहां तक कि हजारों साल से समृद्ध और कामयाब भी है। परंतु अब हम जलवायु परिवर्तन और गहन खेती के प्रभाव के चलते, अपनी सांस्कृतिक विरासत को खोते जा रहे है। आधुनिक विकास ने हमारी पारिस्थिति को पूरी तरह बिगाड़ दिया है। पुराने वक़्त मे हमारे बुजुर्गों ने अपनी बुद्धिमत्ता से इन्ही परिस्थितियों मे एक खुशहाल जीवन जिया था। उन्होने ऐसी तकनीकों को इजाद किया था, जिससे वे पर्यावरण को कोई भी नुकसान पाहुचाए बिना पानी की एक-एक बूंद का संचय कर सकते थे। यहाँ के तालाब और बावड़िया 12 महीने भरी रहती थी। पर भौतिकता के पीछे हमारी इस अंधी दौड़ ने सब कुछ बर्बाद कर दिया है।

ऐसे मे हमारी कोशिश है कि हम इस समस्या के लिए काम करें। बाहर से पानी लाना कोई स्थायी समाधान नहीं है। हम किसी और के हिस्से का पानी उससे छिन के अपनी प्यास बुझा रहे है। कल वो भी खत्म हो जाएगा तब हम क्या करेगे। इसलिए हमारी कोशिश है की हम गांवों मे जाकर लोगो को जागरूक करे और परमाकल्चर तकनीक से अधिक से अधिक वृक्ष लगाए जिससे यहाँ का पारिस्थितिक तंत्र फिर मजबूत हो सके और लोगों को स्थानीय संसाधनो से ही बेहतर रोजगार मिल सके।
इस कोशिश के मध्यम से हमने परिवर्तन लाने का फैसला किया है। हम इस तकनीक के माध्यम से जैसलमेर से 30 किलोमीटर दूर एक गाँव मे एक उदाहरण तैयार कर रहे है जिससे हम लोगों को बता सके की रेगिस्तान मे जंगल होना असंभव नहीं है। और यह तो सिर्फ शुरुआत है…

Yसंपर्क:

खमीशा खान,

ग्रीनिंग जैसलमर सोसाइटी,
जिंदानी चौक, जैसलमर
मोबाइल: 9001234877
ईमेल::
greeningjaisalmer@gmail.com
वेबसाइट:
www.greeningjaisalmer.wordpress.com

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