अन्वेषक: विपिन गुप्ता
व्यवसाय: समाजिक कार्यक्रता
स्थान: भोपाल, मध्यप्रदेश

स्वस्थ लोगों के मन मे अगर यह बैठा दिया जाए की वे बीमार है तो काफी पैसा बनाया जा सकता है। दवाई निर्माता कई वर्षों से यह खेल आम जनता के साथ खेल रहे है। साधारण मनुष्य के शरीर मे कई रासायनिक क्रियाओं की वजह से बुखार, जुखाम, सर्दी आम बात है। आमतौर पर यह हमारे शरीर को और मजबूत बनाने का कार्य करती है। बुखार मे हमारे शरीर से कई तरह के टोकसीन्स शरीर से बाहर निकलते है, पर जब हम दवाई लेकर इस क्रिया को रोक देते है तो यह टोकसीन्स हमारे शरीर मे ही रह जाते है। जिसका असर हमे लंबे समय बाद किसी बड़ी और जानलेवा बीमारी के रूप मे दिखाई देता है। परंतु दवाई निर्माता भय दिखाकर इस आम शारीरिक क्रिया को बीमारी के रूप मे परिभाषित करने का काम कर रहे है।

इसके माध्यम से वे अपने बाज़ार का विस्तार करते है और लोगों के जीवन के साथ खेलते है। अगर हम थोड़ा सा भी शोध करे तो हम जान सकते है की किस प्रकार ये दवाई निर्माता इस अनैतिक और अमानवीय कार्य को अंजाम दे रहे है। वे भय दिखाकर कर हमे दवाई लेने पर मजबूर करते है, हमारे शरीर मे नयी बीमारियों को जन्म देते है, फिर उन्हीं बीमारियों के इलाज के लिए अमानवीय तरीकों से दवाइयों का निर्माण करते है। उनका उद्देश्य सिर्फ मुनाफा कमाना रह गया है जबकि एक समय यह हमारे समाज सेवा का कार्य हुआ करता था। इस खेल मे देवता का दर्जा प्राप्त कई सारे चिकित्सक उनका पूरा साथ देते है। वे अपना कमिशन लेकर लोगों को किसी विशेष कंपनी की दवाई लेने को कहते है और बीमार करने का काम करते है जिससे उनकी दुकाने चल सकें। शायद आपको लग सकता है की मुझे  हर व्यवस्था के खिलाफ लिखने की आदत हो गयी है। इसीलिए मैं इस पवित्र पेशे को बदनाम कर रहा हूँ। पर मैं जो भी लिख रहा हूँ अपने व्यक्तिगत अनुभव से लिख रहा हूँ। मैंने पिछले 5 सालों से कोई दवाई नहीं ली है और मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूँ। मैं खुदकों पहले से कई बेहतर महसूस कर रहा हूँ।

हमारे अगले परिंदे विपिन गुप्ता को भी कभी दवाइयों पर पूरा भरोसा था। वे खुद दवाई निर्माता कंपनियों के लिए शोध करते थे। विश्व की कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों मे उनके शोध को पढ़ाया जाता है। उन्होने कुछ नोबल पुरस्कार प्राप्त शोधकर्ताओं के साथ भी काम किया है। पर कुछ वर्ष पहले इन कंपनियों के कार्य करने के तरीकों पर उन्हें शक होने लगा। उन्होने मन मे इन प्रक्रियाओं पर कई सारे सवाल उठने लगे थे। उन्होने जब इस पर शोध करना शुरू किया तो धीरे-धीरे उनके सामने कई सारी सच्चाइयाँ सामने आने लगी। अपनी शोध मे उन्होने पाया की हर जीवित प्राणी की दो खासियत होती है। पहली प्रजनन(reproduction) की और दूसरी खुद के शरीर को स्वयं ठीक(repair) करने की। बशर्ते है की हमे शरीर को सही वातावरण और जीवनशैली उपलब्ध करवानी होगी। जब उन्हें यह मालूम पड़ा तब वे खुद के जीवन के साथ कई सारे प्रयोग करने लगे। वे अपनी नौकरी छोड़कर अपने जीवन को प्रकृति के करीब ले जाने की कोशिश करने लगे। जहाँ वे कोशिश कर रहे है की कैसे उनके शरीर को सही वातावरण मिल सके व कैसे उनकी जीवनशैली इस तरह हो सकें जहाँ उन्हे दवाइयों का गुलाम बनकर न जीना पड़े।

अपनी कोशिश को एक कदम आगे ले जाते हुए उन्होने देश के कई हिस्सों मे शिविर भी आयोजित किए। इन शिविरों के माध्यम से इन्होने लोगों से सीधे संपर्क किया, मधुमेह, रक्तचाप, हृदय जैसी कई सारी जीवनशैली संबंधी बीमारियों का बिना किसी दवाई का प्रयोग किए हुए इलाज़ किया है। इसी काम को आगे ले जाने के लिए उन्होने भोपाल के पास सेहतवन नाम की एक जगह शुरू की है जहाँ वे लोगों की जीवनशैली और खान-पान मे मामूली बदलाव करते हुए इन बीमारियों का इलाज़ कर रहे है।

वे कहते है कि “यह सब काम करते हुए एक बात जो मुझे समझ आयी है कि हमारे आस-पास दो तरह का पर्यावरण होता है। एक बाहरी, जिसमे पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, हवा-पानी आदि होते है और दूसरा जो हमारे शरीर के भीतर होता है जिसमे कई सारे जीव-जन्तु रहते है। इन्हे हम वैज्ञानिक भाषा मे माइक्रोबायोम(microbiom) और आम भाषा मे जर्म्स(germs) कहते है। यह हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते है। यह हमारे शरीर के लिए उतने ही आवश्यक है जितना कि हमारा बाहरी पर्यावरण है। यह विडम्बना ही है कि हम खुद ही इनका विनाश कर रहे है। पिछले 15-20 वर्षों से हमारे आस-पास विज्ञापनों के माध्यम से ऐसा माहौल बना दिया गया है कि हम इन्हे बुरा मानने लगे है। इन्हे मारने के लिए हम कई सारे सेनेटाइजर्स, साबुन, दवाइयों आदि का प्रयोग करने लगे है। इन वस्तुओं का प्रयोग करने कि वजह से हम धीरे-धीरे अपने ही शरीर को खोखला करते जा रहे है। हम सेहतवन मे लोगों के साथ इन्हीं सब विषयों पर चर्चा करते हुए उन्हे एक ऐसा माहौल और जीवनशैली से अवगत कराते है, जहाँ वे बाहर के पर्यावरण के बीच मे रहते हुए अपने भीतर के पर्यावरण को फिर से सजीव बनाने कि कोशिश करते है। हमे इसके कई नाटकीय नतीजे भी मिले है जहाँ लोगों कि मधूमेह, रक्तचाप जैसी जानलेवा बीमारिया ठीक हो गयी है। यही नहीं अगर सही जीवनशैली को अपनाया जाए तो कैंसर जैसी बीमारियों को भी हम ठीक कर सकते है।”

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