अन्वेषक: सरित शर्मा और संध्या गुप्ता
पेशा: शिक्षाविद्
स्थान: पालमपुर, हिमाचल प्रदेश

52 परिंदे की यह यात्रा मुख्य रूप से पर्यावरण संरक्षण के इर्द-गिर्द केन्द्रित रही है। परंतु हमारी अगली कहानी का पर्यावरण के मुद्दे से कोई सीधा सरोकार नहीं है। इस कहानी को चुनने के पीछे एक खास कारण है। हम चाहे किसी भी समस्या पर कितनी भी चर्चा कर ले, हम तब तक उसका हल नहीं खोज सकते है जब तक हम उस समस्या का पूरी तरह से अवलोकन नहीं कर लेते । किसी भी समस्या के हल को खोजने के लिए सबसे पहले जरूरी है की हम उससे जुड़े सवाल करें। उससे जुड़े विभिन्न पहलुओं का गहनता से अध्ययन करें। अध्ययन करने के बाद उससे प्राप्त नतीजों को आपस मे जोड़कर देखे। तब कहीं जाकर हम उस समस्या की जड़ों तक पहुँच पाएंगे और उसका निराकरण कर पाएंगे। शायद विज्ञान इसी प्रक्रिया को कहते है, जहां हम विभिन्न अध्ययनो से प्राप्त नतीजों को जोड़कर देखते है और किसी निष्कर्ष पर पहुँचते है।

पालमपुर से हमारे अगले परिंदे सरित शर्मा और संध्या गुप्ता इसी विज्ञान और गणित का प्रयोग करते हुए भावी पीढ़ी की सोच को विकसित करने का प्रयास कर रहे है। वे उन्हे तैयार कर रहे है, की वो स्वयं सही और गलत का निर्णय कर सकें। वो समाज मे खड़े होकर निर्भयता से सवाल कर सकें और उनके जवाब खोज सकें।

सरित शर्मा और संध्या गुप्ता पेशे से और शायद अपनी आत्मा से भी इंजीनियर है। इन्हे विज्ञान और गणित के साथ खेलते हुए नए-नए प्रयोग करना अच्छा लगता है। इन्होने भारत मे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत मे ही कुछ साल काम किया। जब इनके पास कुछ पैसे एकत्रित हो गए तो यह आगे के अध्ययन के लिए अमेरिका चले गए। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे वहीं रहकर काम करने लगे। उन्होने पहले ही तय कर लिया था, की वे सिर्फ दस साल तक नौकरी करेंगे पर उन्होने यह नहीं सोचा था की वे उसके बाद क्या करेंगे। दस साल के पूरे होते-होते उनकी बेटी भी थोड़ी बड़ी हो गयी थी। वे चाहते थे की उनकी बेटी अपने देश, अपनी संस्कृति को जाने और उसकी परवरिश भी अपने ही देश मे हो। इसी विचार के सात उन्होने भारत लौटने का मन बना लिया था। भारत मे आकार वे क्या करेंगे, उन्होने इस बारे कुछ भी नहीं सोचा था। उन्होने बस भारत के नक्शे पर एक जगह चुन ली थी, पालमपुर। कारण सिर्फ इतना सा था की यहाँ का मौसम अच्छा था और यह जगह भागते हुए शहर से दूर थी।

जब वे पालमपुर आए तब सभी माता-पिता की तरह वे भी अपनी बेटी की श्किशा के बारे में सोच रहे थे। सरित जी को लगता था कि शिक्षा के लिए किसी विद्यालय आदि की आवश्यकता नहीं है। वो कहीं भी हो सकती है परंतु संध्या जी को लगता था कि बच्चे को स्कूल भेजना जरूरी है। तब संध्या जी आस-पास के कई स्कूल को जाँचने-परखने के बाद इस नतीजे पर पहुँची कि सरकारी स्कूल बच्चों का सबसे कम नुकसान करते है। तब उन्होने अपनी बेटी को अपने घर के पास के सरकारी स्कूल मे दाखिला करा दिया और वे दोनों भी उसी स्कूल मे बच्चों को पढ़ने का काम करने लगे। इस तरह से जब उनका नाता शिक्षा के जुड़ा तब उन्हें हमारी शिक्षण व्यवस्था मे कई तरह की कमियाँ दिखने लगी थी। तब उन्होने बच्चों को पढ़ाने के कई सारे नयी तरीके ईज़ाद किए। फिर धीरे-धीरे उनका ध्यान विज्ञान और गणित पर केन्द्रित हो गया। तब उन्होने पालमपुर मे आविष्कार नाम कि एक जगह शुरू करी जिसके अंतर्गत वे देश के विभिन्न हिस्सों से आए बच्चों को विज्ञान और गणित के माध्यम से सोचने, समझने और सवाल करने कि ताकत दे रहे है। उन्हें इस लायक बना रहे जहाँ से वे अपने और समाज के लिए सही निर्णय ले सकें और एक बेहतर जीवन जी सकें|

सरित जी कहते है कि “हम पढ़ने के साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों मे विज्ञान मेलों का भी आयोजन करते है। वैसे तो हम सभी तरह के बच्चों के साथ कम करते है पर हमारी प्राथमिकता ऐसे बच्चों के साथ काम करने कि है जो समाज के पिछड़े वर्ग से आते है। इसका बड़ा कारण यह है कि हम इन बच्चों को शिक्षा के माध्यम से इतना ताकतवर बना दे कि यह स्वयं अपनी एक पहचान बना सकें। यह कल जाकर अपने समाज का प्रतिनिधित्व कर सकें। उनसे जुड़ी समस्याओं पर सवाल कर सकें। उनके जवाब खोज सकें और उनके साथ जुड़े “पिछड़े” शब्द को अपने जीवन से निकाल सकें। और हम लोगों ने यह करने का तरीका विज्ञान और गणित मे पाया है। विज्ञान और गणित का आधार सवाल होते है। विज्ञान और गणित आपको सोचने पर मजबूर करते है। जब आप सोचने पर मजबूर होते हो तो तब आप सवाल करते हो। जब तक आप सवाल नहीं करते हो तब तक आप उनके जवाब खोजने कि कोशिश नहीं करते हो। और आपको सही जवाब तब ही मिलते जब आप उस सवाल से जुड़े सभी पहलुओं का अवलोकन नहीं कर लेते है। और सही मायने विज्ञान और गणित का असली मकसद भी यही है कि बच्चे खुद चीजों को जाँच-परख सकें। उनका अवलोकन कर सकें और सहीं और गलत का निर्णय कर सकें।”

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