अन्वेषक: जिल फर्गुसन
व्यवसाय: पर्यवारंविद
स्थान: मंद्रेम,गोवा

मानव जाति के सम्पूर्ण इतिहास के दौरान समन्दर ने हमेशा से ही उसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित किया है। समुद्र का जल सदा से ही भोजन, बहुमूल्य खनिजों, व्यापार के लिए एक विशाल राजमार्ग के रूप में, अपशिष्ट के निस्तारण, ऋतु चक्र के संतुलन को बनाए रखने आदि के एक विशाल और बहुमूल्य स्त्रोत के रूप मे मानव जाती की सेवा करता आया है। एक शोध के अनुसार पृथ्वी के वातावरण मे पायी जाने वाली जीवनदायी ऑक्सिजन की 70% आपूर्ति समन्दर द्वारा की जाती है। यही नहीं सम्पूर्ण विश्व के संतुलित आहार के लिए आवश्यक प्रोटीन की 10 प्रतिशत आपूर्ति भी समुद्र द्वारा की जाती है। आज बदलते वक़्त के साथ समन्दर मनोरंजन और पर्यटन के माध्यम से मानव जाति की सेवा कर रहा है।

प्रत्येक वर्ष अपने मनोरंजन के लिए लाखों की संख्या मे लोग मछ्ली पकड़ने, नौका विहार के लिए, विभिन्न प्रकार के वॉटर स्पोर्ट्स के लिए लोग महासागरों की ओर आकर्षित हो रहे है। परंतु लगता है आज हमने समन्दर द्वारा की जा रही मानव जाति की इस सेवा को taken for granted ले लिया है। तभी आज महासागर प्रदूषण के विशाल ढेर के बीच मे अपनी एक जगह तलाश रहा है। यकीन नहीं आता तो स्वयं से सवाल करके देखिये जब भी आप छुट्टियों के लिए किसी प्रकृतिक स्थल पर भ्रमण के लिए गए है तब आपने वहां कितना कचरा वहाँ फैलाया है। हमने जो भी प्लास्टिक की थैलियों मे बंद आहार किया है उसका कचरा हमने कहाँ फेंका है। हमारे शर्बत की straws कहाँ जाती है। कुछ लोग होंगे जो ये कहेंगे की हम तो सारा कचरा डस्ट्बिन मे ही डालते है। उन लोगों से यह सवाल है की उन्होने कभी सोचा है की वो सारा कचरा डस्ट्बिन से कहाँ जाता है? कुछ लोग ऐसे भी होंगे की जो यह सवाल सुनना भी नहीं चाहेंगे। सही भी है, क्यो सुने। हम मानव जन्म से ही स्वार्थी जो होते है। खैर मेरा इरादा यहाँ किसी पर आरोप लगाने का नहीं है बस एक इशारा करना चाहता था की हम किस दिशा मे बढ़ रहे है। हमारे अगले परिंदे की भी यही सोच है। किसी पर आरोप लगाने से बेहतर है आप समस्या के समाधान मे अपनी ऊर्जा लगाए। आपके सकारात्मक प्रयासों को देखकर लोग स्वत: ही आपसे जुडने लगेंगे। अमेरिका मे जन्मी और वही से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाली जिल फरग्यूसन जब अपनी पढ़ाई के सिलसिले मे गुजरात के गाँव मे मानव अधिकारों के लिए काम कर रही थी तब उन्होने देखा की हमारे द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से फैलाये जा रहे प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ता है जो लोग सीधे तौर पर अपने जीवनयापन के लिए जमीन से जुड़े हुए है।

वो अपना एक अनुभव बताती है “गुजरात मे काम करते वक़्त मैंने देखा की इंडस्ट्रीज़ के द्वारा छोड़े गए केमिकल युक्त पानी की वजह से हजारों की संख्या मे मछलियाँ पानी की सतह पर पड़ी हुई थी। उसकी वजह से पूरा गाँव प्रभावित हो रहा था। गाँव वालो के साथ मिलकर किए कुछ प्रयासों की वजह से कुछ सरकारी कर्मचारियो ने उन मछलियों को तो पानी से निकाल दिया था। पर इस घटना की वजह से मेरे मन में यह सवाल रह गया था की क्या यह पानी सही मायने मे साफ है? इसी पानी को गाँव के लोग पीने, नहाने आदि के रोज़मर्रा के काम मे उपयोग में लाते है। इसका उनकी सेहत पर क्या असर पड़ेगा? क्यो गाँव के लोग इसके खिलाफ आवाज़ उठाते है? मैंने इसके लिए अपनी संस्था के साथ मिलकर कुछ सबूत इककट्ठे किए और हमने इसके समाधान के लिए अदालत मे एक याचिका दायर करी। खैर, इसी दौरान अपनी पढ़ाई की वजह से मुझे दोबारा अमेरिका जाना पड़ा और मुझे नहीं मालूम उस याचिका का क्या समाधान हुआ। पर मेरे मन मे यह सवाल रह गया की क्या की यह अदालत और याचिकाए इन समस्याओं का स्थायी समाधान है?”

इस सवाल के साथ रहते हुए उनकी पढ़ाई खत्म हो गयी थी। अब वो सोचने लगी थी की उन्होने लगभग 2 वर्षों तक भारत मे काम करते हुए उसे समझने मे बिताए है तो क्यो नहीं वही जाकर कुछ काम शुरू किया जाए। इसी दौरान उन्हे अपने कॉलेज के एक मित्र राहुल मालानी का साथ मिला और उन्हे वायु शुरू करने का विचार आया।

वे बताती है की “वायु सिर्फ एक रिज़ॉर्ट और वॉटर स्पोर्ट्स का केंद्र नहीं है। इसके माध्यम से हम लोगो को यह बताना चाहते है की आप अपने आसपास के पर्यावरण का ध्यान रखते हुए कैसे एक सफल बिज़नस चला सकते हैं । इसके लिए हमने हमारा सारा construction ऐसी वस्तुओं से किया है जिससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पाहुचता है साथ ही अब हम कोशिश कर रहे है की कैसे हम café के लिए अधिक से अधिक सब्जियाँ और अनाज बिना रसायन का प्रयोग करते हुए उगा सके जिससे हमारा carbon footprint कम से कम हो सके। वॉटर स्पोर्ट्स के माध्यम से हम लोगो का समन्दर के साथ एक रिश्ता कायम करने की कोशिश करते है क्योंकि उपभोग की संस्कृति मे हम प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते को लगभग भूल से गए है। हमे चाहिए की हम कैसे प्रकृति को समझते हुए उसके साथ प्रेम का एक रिश्ता कायम कर सके और उसके साथ सामंजस्य से रह सकें। हमे आज सबसे ज्यादा हमारे आध्यात्मिक विकास की जरूरत है। और प्रकृति को समझे बिना उससे प्यार करे बिना यह संभव नहीं है। इसके लिए हम अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर महीने मे दो बार समन्दर के आसपास के क्षेत्र की सफाई का अभियान चलाते है और हमारी कोशिश रहती है हम इसमे ज्यादा से ज्यादा स्थानीय लोगों को जोड़ सके क्योंकि वो यहा हजारो सालो से रहते आ रहे है। यह जगह उनकी अपनी है। बस वो कुछ चमकती चीजों के बहकावे मे आकर इसके महत्व को भूल चुके है और जब हम यह सारे काम करेंगे नहीं बदलवाव संभव नहीं है। वहीं दूसरी तरफ अगर हम खुद समाधान का हिस्सा बन जाएंगे तो लोग अपने आप ही हमसे जुड़ते चले जाएंगे और बदलाव तभी आ पाएगा।”

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