अन्वेषक: सुलोचना पन्देकर
व्यवसाय: मीडिया और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता
स्थान: सिओलिम, गोवा

महीने मे एक बार दुनिया की आधी आबादी एक ऐसी समस्या से जूझती है जिसमे उनके शरीर से रक्त का कुछ हिस्सा बह के निकाल जाता है। जिसे हम मासिक पाली, मासिक धर्म, periods या mensuration के नाम से जानते है। मेरा उसे समस्या कहना लाज़िम नहीं है। यह एक प्राकृतिक क्रिया है जो हर औरत के शारीरिक बनावट का अहम हिस्सा है। जब हम इसे समस्या कह देते है तभी से हम इसे ढकने या छिपाने की कोशिश करने लगते है और असली समस्या इस वजह से शुरू होती है। इस कारण हम इस पर खुलकर बात करने से कतराते है। और जब हम बात नहीं करते है तो गलतफहमियाँ पैदा होती है। आप सोच सकते है की अगर किसी ऐसे विषय पर जो सीधे तौर पर मनुष्य के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है उसपर हज़ारों सालों से समाज मे खुलकर चर्चा नहीं की गयी है तो उस विषय के बारे दुनिया मे कितनी गलतफहमियाँ और विरोधाभास फैले होंगे ।

मैं भी इसी समाज का हिस्सा हूँ और जब तक मैं अपने अगले परिंदे से नहीं मिला था मेरी भी इस विषय पर बेहद सीमित जानकारी थी। तथा जो भी जानकारी थी उसमे से ज़्यादातर मेरे assumptions ही थे क्योंकि मुझे इस बारे मे बताने वाला कोई नहीं था। हमारा अगला परिंदा ऐसी गलतफहमियों, विरोधाभास और assumptions को समाज से दूर करने की कोशिश कर रही है और यही नहीं, इस विषय की वजह से हमारे पर्यावरण पर क्या विपरीत असर पड़ रहा है उसके बारे मे भी लोगों को शिक्षित करने का काम कर रही है।

सुलोचना पेंढेकर गोवा के छोटे से गाँव मे पली-बढ़ी और छात्रवृति के माध्यम से इनहोने अपनी शिक्षा पूरी करी। इनका शिक्षक बनने का सपना था क्योंकि इनका सोचना था की इस समाज ने उनकी शिक्षा मे अहम भूमिका निभाई है अब इनकी ज़िम्मेदारी है की वे समाज के प्रति अपने कर्तव्य को निभाए। अपने शिक्षक बनने के प्रयास मे इनहोने पाया की शिक्षक बनने के लिए डिग्री से ज्यादा पैसे और कुछ रसूखदार लोगों से जान-पहचान होना ज्यादा आवश्यक है। तब उन्होने तय किया की जो भी काम मिलेगा वो उसे करेगी पर वो काम समाज की बेहतरी के लिए ही होगा। शुरुआत मे उन्होने एक संस्था के साथ जुड़कर आम जनता की समस्याओं के सर्वे का काम किया । इसी दौरान उनकी फोटोग्राफी और कैमरा के साथ काम करने मे रुचि बढ़ने लगी। तब उन्होने एक फिल्म मेकिंग वर्कशॉप के माध्यम से फिल्म बनाना सीखा और इसके बाद वे वीडियो वॉलंटियर संस्था से जुड़ गयी।

सर्वे के काम के दौरान उनका लोगों से सीधा जुड़ाव था और इसी वजह से उन्हें लोगों की समस्या की जमीनी हकीकत का भी एहसास था। वो कहती है की “गोवा मे टूरिस्म की वजह से हर जगह कचरे की समस्या सामने आ रही थी। ऐसे मे मुझे लगा की इस समस्या के लिए कुछ तो करना चाहिए। तब ही ख़्याल आया की लोगों को वीडियोज़ के माध्यम से इस समस्या की विकरालता और इसके समाधान के बारे मे बताया जाये क्योंकि जब तक लोग देखेंगे नहीं तब तक वो इस समस्या को महसूस नहीं कर पाएंगे। और अगर वो इसे महसूस नहीं करेंगे तो इस समस्या के समाधान का हिस्सा भी नहीं बन पाएंगे। तब हमने कचरे की समस्या को लेकर कई वीडियोज़ बनाए और उनका गोवा के कई गांवों मे स्क्रीनिंग किया। उन वीडियोज़ को सरकारी अफसरों को दिखाया और उन्हे इस समस्या पर काम करने के लिए प्रेरित किया।”

इसी दौरान उन्हे सेनेटरी नैप्किंस से पर्यावरण और औरतों की सेहत पर पड़ने वाले विपरीत असर के बारे मे जानकारी मिली। इस विषय पर उनकी शुरू से ही रुचि थी। फिल्म मेकिंग वर्कशॉप के दौरान भी उन्होने इस समस्या पर एक विडियो बनाया था। तब उन्होने इस पर और रिसर्च करना शुरू कर दिया। अपनी रिसर्च के दौरान उन्हे पता पड़ा कि एक सेनेटरी नैप्किन को डिसपोस होने के लिए कम से कम 800 साल का समय लगता है और औसतन एक औरत अपने जीवन काल के दौरान 150 टन नैप्किंस का प्रयोग करती है। वो कहती है कि “ आप इसी से अंदाजा लगा सकते है हम जो दुनिया कि आधी आबादी है वे इस धरती कि सेहत को खराब करने मे किस तरह से भागीदार है। तब मैंने तय कर लिया कि मुझे इसके विकल्प तलाशने होंगे और उन्हे महिलाओं तक पहुँचाना होगा। इसी दौरान मुझे पता चला की सेनेटरी नैप्किंस की वजह से औरतों मे बांझपन और यूट्रस कैंसर की समस्याएँ बढ़ रही है। जब मुझे यह पता चला तब मेरा निश्चय और अटल हो गया कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं कुछ भी काम करूं पर मैं इस विषय पर काम करना नहीं छोड़ूँगी। पर मेरे सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि मेरे पास इन नैप्किंस के विकल्प मौजूद नहीं थे और एक हद तक ये नैप्किंस औरतों को घर से बाहर निकलकर काम करने मे मददगार साबित हो रहे थे। यह वो सच्चाई है जिसे मैं बादल नहीं सकती थी। और जब तक मैं लोगों को एक बेहतर विकल्प नहीं दे सकती हूँ तब तक मेरा उनसे इन नैप्किंस का प्रयोग न करने का अनुरोध करना लाज़िम नहीं था। तभी मुझे कपड़े से बने हुए सेनेटरी नैप्किंस के बारे मे पता चला, जो कि हर तरह से धरती और औरतों की सेहत के लिए एक बेहतर विकल्प है।”

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