अन्वेषक: स्नेहल त्रिवेदी
व्यवसाय: जैविक किसान
स्थान: औरोविल
अपनी पूरी ज़िंदगी एक ग्राफिक डिज़ाइनर की तरह बिताने वाले स्नेहल त्रिवेदी को दो वर्षो तक जब इंग्लैंड मे रहने का मौका मिला, तब पाश्चत्य संस्कृति और शहर की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी से उनका मन भर गया। कुछ वर्ष पूर्व फिर से अपनी जड़ों से जुड़ने की चाहत मे उन्होने इंग्लैंड से आकर औरोविल के समीप एक छोटे से गाँव में अपनी एक नयी ज़िंदगी का सफर शुरू किया। 2007 मे उन्होने औरोविल के समीप एक छोटे से गाँव मे एक एकड़ बंजर ज़मीन खरीदी, उनका सपना था की वे इस ज़मीन पर अपने लिए एक छोटा सा घर बनाए जो पूरी तरह प्रकृतिक संसाधनों से बना हुआ हो और वे यहाँ की खेती मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए कुछ प्रयोग कर सकें।
सौराष्ट्र के छोटे से गाँव मे जन्मे स्नेहल का बचपन ऐसे माहौल मे गुजरा जहाँ उन्हे खेत से ताज़ा खाना मिलता था, जहाँ शुद्ध घी, दूध की कोई कमी नहीं थी। जब वे गाँव छोड़कर शहर आए तब भी वे अपनी दादी के साथ घर के पिछवाड़े मे किचन गार्डन में उनकी मदद करते रहते थे। वो बताते है कि “ वे बचपन मे पूरे साल ताज़ा फलों का आनंद लिया करते थे, मिट्टी मे खेला करते थे, पेड़ों पर चढ़ा करते थे। ये कुछ ऐसी यादें है जिनहोने मेरे दिल मे अपना घर बना लिया है, और शायद यहीं वजह है कि मैं शहर कि भागदौड़ भरी ज़िंदगी के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाया।”
जब स्नेहल 33 साल के हुए तब तक उन्होने कुछ पैसे जमा कर लिए थे। तब उन्हें लगा कि अब 9 से 5 वाली ऑफिस ज़िंदगी को अलविदा कहने का समय आ गया है। भारत लौटकर उन्होने देश के कई हिस्सों मे भ्रमण किया और ऐसे लोगों से मिले जो खेती पर कई तरह के प्रयोग कर रहे थे, तभी उन्हे permaculture तकनीक के बारे मे पता चला और इससे प्रभावित होकर उन्होने इसका अध्ययन किया। जब वे इसका अध्ययन कर रहे थे तब उन्होने जाना कि यह महज़ एक ज़मीन के टुकड़े पर खेती करने कि तकनीक नहीं है अपितु यह तकनीक किसी भी ज़मीन के टुकड़े पर एक पूरे जंगल को जन्म दे सकती है। जहाँ कई प्रकार के जीव-जन्तु अपना घर बना सकते है। इस तकनीक के माध्यम से हम बंजर ज़मीन को भी सोना बना सकते है। तब उन्होने “Heal the Soil” प्रोजेक्ट डिज़ाइन किया। इसका पहला प्रयोग स्नेहल ने अपनी ज़मीन पर किया। अपने फार्म को जब उन्होने खरीदा था तब यह ज़मीन पूरी तरह बंजर थी, कई लोगों ने इन्हे राय भी दी कि इस ज़मीन पर पैसा खर्च करना, पैसे कि बरबादी करना है। पर कुछ ही वर्षों मे लोगों से मिले ज्ञान और अपनी लगन से स्नेहल ने इस छोटी सी ज़मीन पर एक चमत्कार को जन्म दिया। जहाँ कुछ वर्षों पूर्व इस ज़मीन पर सूरज आग बरसाता था, अब यहाँ इतनी हरियाली है कि आपको सूरज देखने के लिए यहाँ से बाहर निकलना पड़ेगा। जिस ज़मीन पर पिछले 300 सालों से कुछ नहीं उगा था, जहाँ top soil का नामो-निशान नहीं था, आज वो 150 से भी अधिक प्रकार के पेड़-पौधो, और सैंकड़ों जीव-जंतुओं का घर बन चुका है। यही नहीं इस प्रयोग के सफल होने के बाद उन्होने कई देशों मे, कई समुदायों के लिए इस तकनीक का सफल प्रयोग किया है और लोगों के साथ अपना ज्ञान सांझा किया है।
वे कहते है कि “अपनी जड़ों पर फिर से लौटने और ज़मीन के साथ जुड़कर जीने कि वजह से मैं जीवन के चक्र को बेहद करीब से देख पाया हूँ, समझ पाया हूँ। अनाज का हर एक दाना, हर एक बीज, सारे जीव-जन्तु अपने मूल्य को पहचानते है, अपने आप को जानते हैं। पर हम मनुष्यों कि ज़िंदगी को कुछ लोगों ने इस तरह से डिज़ाइन कर लिया है कि हम अपने आप से ही दूर होते जा रहे है। ऐसे मे जरूरी है कि हर व्यक्ति को अपने आप को खोजना होगा, अपने रास्ते बनाने होगे, ज़मीन से जुड़ना होगा, अपने साथ-साथ ऐसे लोगों को खोजना होगा जो आप जैसे हो और समुदाय को खोजना होगा और उसके साथ जीना होगा। हमारी ज़िंदगी आज कुछ केंद्रीकृत ताकतों के हाथ कि कठपुतली बन गयी है। इस चंगुल से निकलने का एक ही रास्ता है की हम केन्द्रीकरण से विकंद्रीकरण की तरफ बढ़े। ग्लोबल की जगह लोकल इकॉनमी को अपनाए। छोटे-छोटे समुदाय बनाए, जहाँ लोग एकमत होकर अपने जैसे लोगों के बीच रह सकें। जीने के लिए जो भी आवश्यक ज्ञान और शिक्षा की जरूरत है वो लोग मिलकर तय करे। मेरे खुदके जीवन मे मैंने जीवन के बारे मे सीखा है, वो स्कूल-कॉलेज मे मुझे कभी सिखाया ही नहीं गया था। उसके लिए हमे व्याहवाहरिक ज्ञान की जरूरत होती है जो आप एक बंद कमरे मे बैठ कर कभी नहीं सीख सकते है। उसके लिए तो आपको बाहर निकलना होगा, इस विश्व को अपना क्लासरूम बनाना होगा और इस प्रकृति को अपना गुरु बनाना होगा।”