अन्वेषक: दीपिका चोर्डिया
व्यवसाय: रहने वाले सुविधाप्रदाता
स्थान: वेल्हे,महाराष्ट्र

भारत आज आबादी के घनत्व के मामले मे एक बहुत बड़ी समस्या से गुजर रहा है। एक तरफ जहाँ बहुत तेज़ी से गावों की आबादी शहरों की ओर पलायन कर रही है, वहीं दूसरी तरफ शहरों को इस बढ़ती हुई आबादी के कारण झुग्गियों की गंदगी को मजबूरन झेलना पड़ रहा है। गांवों में बूढ़े और बच्चों के अतिरिक्त कोई युवा बमुश्किल ही दिखाई पड़ता है। ये झुग्गियाँ और इनकी सारी गंदगियाँ भारत के हर शहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गयी है। इतना महत्वपूर्ण हिस्सा की एक शहर का जीवन इन गंदी बस्तियों के बिना चल ही नहीं सकता है। पर क्या किसी ने कभी सोचा है कि क्यों शहर के सबसे महत्वपूर्ण लोग जो हर रोज़ एक शहर को चलाते है वो क्यों इस गंदगी मे जीने को मजबूर है? क्यों वो अपने गाँव की सुकून भरी जिंदगी को छोड़कर इस तरह हर रोज़ मरते हुए जीने का अभिनय करते है?

इन लोगों को मालूम है की वो क्या कीमत चुका कर शहर का धुआँ पीने को मजबूर है। फिर भी वो इन शहरों को छोड़कर नहीं जा सकते है क्योंकि ये शहर उन्हे वो देता है जिससे ये अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं, और वो है रुपया । हम आज इसी से अमीरी और गरीबी का पैमाना मापते हैं। जिसके पास जीतने ज्यादा कागज़ के यह टुकड़े है वो उतना ही ज्यादा अमीर है। उसे उतना ही ज्यादा सम्मान मिलता है। पर सवाल यह है की क्या सही मायनों में यह कागज़ के टुकड़े अमीरी का पैमाना है या आज हमे अमीरी को मापने के पैमानो को बदलने की जरूरत है। क्योंकि अगर आज यह पैमाने बदल जाएगे तो शायद हम तेज़ी से बढ़ते हुए शहरीकरण की समस्या को काफी हद तक काबू मे कर पाएंगे। हमे स्मार्ट सीटीज़ पर हमारे बहुमूल्य संसाधनों को व्यर्थ करने की जरूरत नहीं रहेगी और लोगों को अपना घर छोड़कर भटकने की जरूरत नहीं रहेगी। मैं जिन पैमानों की बात कर रहा हूँ उनका हम शहरी लोगों के लिए कोई खास मूल्य नहीं है।

परन्तु मैं ये भी नहीं कहता की इनका हमारे लिए कोई महत्व नहीं है। ये हमारे लिए उतने ही महत्वपूर्ण है जितना की उन गाँव के लोगों के लिए । पर हमे लगता है की हम पैसों से शुद्ध हवा, शुद्ध पानी, शुद्ध खाना आदि सब खरीद सकते है। ठीक भी है, आज पैसों से यह सब खरीदा जा सकता है। पर क्या हम पैसों से सुकून खरीद सकते है? क्या हम पैसों से खुशी खरीद सकते है? क्या हम पैसों से प्यार और अपनापन खरीद सकते है। फिर भी हमे लगता है की हम पैसों से सब कुछ खरीद सकते हैं ।

तो शायद हमे खुद से एक बार सवाल करने की जरूरत है। क्योंकि जिन पैसों से हम आज बीमारी का इलाज खरीदते है उसी पैसे से पहले हम उस बीमारी को खरीदते है। यही बात कुछ साल पहले पुणे के एक डॉक्टर प्रवीण चोरडिया को समझ मे आयी थी। जब उन्हे यह बात समझ आई तब वे पुणे शहर के बाहर एक बंजर ज़मीन को खरीदकर उसे हरा-भरा करने मे जुट गए। पर शायद यह उनके अकेले की बस की बात नहीं थी। इसलिए कुछ समय बाद ही उन्होने इस वन को बनाने की उम्मीद छोड़ दी थी। पर 2008 मे जब उनकी छोटी बेटी दीपिका अपनी पढ़ाई पूरी करके पुणे लौटी तब उन्होने अपने पिताजी के इस सपने को पूरा करने का निश्चय किया। वे खुद भी पुणे की भागदौड़ भरी जिंदगी से खुश नहीं थी। उन्होने उस ज़मीन पर एक ऐसी जगह का निर्माण करने का संकल्प किया, जहाँ पर ऐसे लोग आकर रह सकते है, जो शुद्ध वातावरण और पर्यावरण के महत्व को समझते है और शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से तंग आकर एक सुकून भरी जिंदगी की तलाश कर रहे है। इसी सोच के साथ “Serene Eco Village” की नींव रखी गयी। शुरुआत मे जब उन्होने यहाँ फिर से वनों को उगाने की कोशिश की तब शायद प्रकृति भी उनकी संकल्प की परीक्षा लेना चाहती थी। शायद इसीलिए जंगल की आग ने उनके कई प्रयासों को विफल कर दिया और बची हुई कसर आस-पास के गाँव वालों ने उनके द्वारा लगाए हुए पेड़ों को काटकर पूरी कर दी। पर उन्होने हिम्मत नहीं हारी और इस सब मे उन्हे साथ मिला अपने पती का। उनके पती भी अपनी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से उनके साथ serene को खड़ा करने मे उनका साथ देने लगे थे। इसी बीच उन्होने एक खूबसूरत परी को जन्म दिया। उनकी बेटी मीरा के जन्म के बाद वह कहती है कि “ उसके पैदा होने के बाद मेरा और निखिल का यह संकल्प और भी ज्यादा मजबूत हो गया है की हमें दोबारा शहर मे नहीं जाना है। क्योंकि हम शहर की गलतियों को जानते है, हम वहाँ पले बढ़े है, हमने वहाँ के ज़हर को पिया है और हम नहीं चाहते है की हमारी बेटी भी ऐसे माहौल मे बड़ी हो।”

आज serene मे 35 ऐकड़ पर घना जंगल उगा हुआ है और कुछ छोटे-छोटे प्रयासों से करीब 10 परिवार दोबारा लौटकर गाँव आ चुके हैं । इनकी कोशिश है की कैसे गाँव के लोगों को रोजगार के लिए गाँव छोड़कर नहीं जाना पड़े। इसके लिए उन्होने कुछ लघु उदद्योग की भी स्थापना करी है। उनकी कोशिश है की कैसे ज्यादा से ज्यादा लोग इस बात को समझे और गाँव लौटकर प्रकृति के साथ मिलकर खुशी से अपना जीवनयापन करे।

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