विकास के लिए प्रकृति का दोहन

अन्वेषक: मीनाक्षी उमेश व्यवसाय: वैकल्पिक शिक्षाविद् स्थान: धर्मापुरी, तमिलनाडु आज पूरी दुनिया मनुष्यों के द्वारा की गयी गलतियों के कारण जलवायु परिवर्तन के विनाशकरी प्रभावों का अनुभव कर रहीं है, पानी की गुणवत्ता में कमी, मिट्टी का क्षरण, बाढ़, बढ़ते तापमान, बारिश के पैटर्न में अप्रत्याशित परिवर्तन, और जैव विविधता के नुकसान, समुद्र के जलस्तर का बढ़ना जैसी कई विनाशकरी चुनौतियाँ हमारे सामने सिर उठा के खड़ी हैं और हमारा मज़ाक उड़ा रही है। इन समस्याओं का सबसे ज्यादा प्रभाव उन लोगों पर होता है जो सीधे तौर पर प्रकृति के साथ मिलकर अपना जीवन जीते है और वे लोग जो प्रकृति को अपना भगवान मानते है। ये किसान, मछुआरे,…

तितलियों से फूलेगा-फलेगा हमारा संसार

अन्वेषक: सममिलन व्यवसाय: तितली संरक्षणवादी स्थान: मैंगलूरू, कर्नाटक तितलियाँ सदियों से मनुष्यों को आकर्षित करती आई है। उनके रंग-बिरंगे पंख हमे प्रकृति की खूबसूरती दर्शाते है। बच्चों को उनका पीछा करना अच्छा लगता है, कवि उनकी खूबसूरती से मोहित होकर कवितायें लिखते है। उनका प्रवास चक्र कई बुद्धिमान शोधकर्ताओं और वेज्ञानिकों के लिए अभी भी एक अबूझ पहेली है और विषम खोज का विषय है। प्रकृति प्रेमियों के लिए तितलियाँ जीवन का आधार है, जिनहोने धरती पर जीवन को बनाए रखने मे अपना अनमोल योगदान दिया है। वे इसके लिए कृतज्ञ है और शायद समय आ गया है कि हम भी इन रंग-बिरंगे खूबसूरत जीवों के प्रति अपनी कृतज्ञता दर्शाये…

कहानियां, समाज का एक आइना

अन्वेषक: प्रिया मुथुकुमार व्यवसाय: कथावाचक स्थान: चेन्नई आदिकाल से मनुष्य का कहानियों के साथ अनूठा सम्बंध रहा है। कहानी कहना एक कला है। इतिहास के पन्नों को अगर हम पलटकर देखें तो, हमारे पूर्वज चित्रों के माध्यम से प्राचीन गुफाओं मे हमारे लिए कई कहानियाँ कहकर गए है। एक तरफ जहाँ मनुष्य प्रजाति के क्रमिक विकास मे इस कला ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, वहीं दूसरी तरफ मनुष्य ने अपने विकास के साथ इस कला को भी विकसित किया है। कह सकते है की मनुष्य प्रजाति का विकास और कहानी कहने की कला एक-दूसरे के पूरक है। एक के विकास के बिना दूसरे का विकास संभव नहीं है। दूसरे शब्दों…

लोकसाहित्य में छिपा पर्यावरण संरक्षण का मंत्र

अन्वेषक: शांति नायक व्यवसाय: लोकसाहित्य संरक्षणवादी  स्थान: होनावर, कर्नाटक मानव द्वारा हजारों वर्षों से इस्तेमाल किए जा रहे, जंगली जैविक भोजन, प्राकृतिक संसाधनों से बने आश्रय और सांस्कृतिक गतिविधियों की संख्या आज विलुप्त हो चुकी हैं। इन संसाधनों के प्रयोग की विधियों को मानव ने अपनी परिस्तिथि को ध्यान मे रखते हुए विकसित किया था। अतीत में विकसित किए गए इस ज्ञान को मानव ने अपनी बहुमूल्य निधि के रूप में सहेज कर रखा हुआ था। पिछले 150 सालों से चली आ रही औद्योगिक क्रांति के प्रभाव में यह ज्ञान लुप्त होता जा रहा है। हमारी शिक्षण व्यवस्था और पाठ्यपुस्तकों में इसकेलिए कोई जगह ही नहीं रखी गयी है। हमें…

विस्थापित प्रणाली से विस्थापित ज़िन्दगी

अन्वेषक: राघव व्यवसाय: प्राकृतिक किसान स्थान: दवानगेरे,कर्नाटक "हाँ सचमुच! प्राकृतिक प्रणालिया एक उल्लेखनीय फिर से निरंतर चक्र में परिणत करने की नवीनीकृत प्रवृत्ति है। किसानों के रूप में , हम इन चक्रों के साथ काम करते हैं और प्रकृति को खुद पनपने के लिए छोड़ देते है। जब भी जरूरत होगी यह स्वयं धीमा होगा या तेज़ "- राघव प्राकृतिक कृषि, मानव दखल के हस्तक्षेप से मुक्त पर आधारित है कृषि की एक प्रक्रिया । यह मानव ज्ञान और क्रियाओं द्वारा प्रकृति मे किए गए विनाश को पुनः बहाल करने और मानव के प्रकृति से लिए गए तलाक को पुनः एक सजीव रिश्ते मे बदलने का एक प्रयास है। राघवा…

A naturally healthy bond

Innovator: Varsha Samuel Rajkumar Vocation: Organic gardener Location: Dharwad, Karnataka Most of us, at some point of time in life, have felt a strong desire to get out of the house and spend time amid nature. This desire need not always involve travel but it could be to sit in our balcony and stare at the sky or lie down on the grass in the park or take an early morning stroll. But I wonder what is it that makes us feel calm and at peace when we’re close to nature? Does proximity to nature distances us from negative thoughts? What is the reason that we find ourselves happy when…

पर्यावरण संरक्षण,सुरक्षा व रोज़गार

अन्वेषक: पराग मोदी व्यवसाय: पर्यावरण आदिवक्ता स्थान: मोर्गोया, गोवा अपनी पिछली दो कहानियों की तरह मुझे अपने नए परिंदे की कहानी से भी आधुनिक सामाजिक व्यवस्था से उत्पन्न पर्यावरण के सबसे बड़े खतरे] कचरे की समस्या को और करीब से जानने का अवसर प्राप्त हुआ है। हमारे पिछले परिंदे जहां इस समस्या के प्रति जागरूकता जगाने का प्रयास कर रहे थे] वही पराग अपने बिज़नस के माध्यम से, जो कचरा इस धरती पर फैला हुआ है उसको इस धरती के लिए कैसे बहुमूल्य खजाने मे तब्दील कर सकते है? और उस कचरे से कैसे अपने लिए आजीविका प्राप्त कर सकते है?, बताने की कोशिश कर रहे है। एक आंकड़े के…

सैनिटरी नैपकिन्स का विकल्प

अन्वेषक: सुलोचना पन्देकर व्यवसाय: मीडिया और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता स्थान: सिओलिम, गोवा महीने मे एक बार दुनिया की आधी आबादी एक ऐसी समस्या से जूझती है जिसमे उनके शरीर से रक्त का कुछ हिस्सा बह के निकाल जाता है। जिसे हम मासिक पाली, मासिक धर्म, periods या mensuration के नाम से जानते है। मेरा उसे समस्या कहना लाज़िम नहीं है। यह एक प्राकृतिक क्रिया है जो हर औरत के शारीरिक बनावट का अहम हिस्सा है। जब हम इसे समस्या कह देते है तभी से हम इसे ढकने या छिपाने की कोशिश करने लगते है और असली समस्या इस वजह से शुरू होती है। इस कारण हम इस पर खुलकर बात…

वायु, जल और ज़मीन

अन्वेषक: जिल फर्गुसन व्यवसाय: पर्यवारंविद स्थान: मंद्रेम,गोवा मानव जाति के सम्पूर्ण इतिहास के दौरान समन्दर ने हमेशा से ही उसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित किया है। समुद्र का जल सदा से ही भोजन, बहुमूल्य खनिजों, व्यापार के लिए एक विशाल राजमार्ग के रूप में, अपशिष्ट के निस्तारण, ऋतु चक्र के संतुलन को बनाए रखने आदि के एक विशाल और बहुमूल्य स्त्रोत के रूप मे मानव जाती की सेवा करता आया है। एक शोध के अनुसार पृथ्वी के वातावरण मे पायी जाने वाली जीवनदायी ऑक्सिजन की 70% आपूर्ति समन्दर द्वारा की जाती है। यही नहीं सम्पूर्ण विश्व के संतुलित आहार के लिए आवश्यक प्रोटीन की 10 प्रतिशत आपूर्ति भी…

उदबिलाव संरक्षण

अन्वेषक: मल्हार इंदुलकर व्यवसाय: उदबिलाव संरक्षणवादी स्थान: चिपलून, महारष्ट्र मैं हमेशा से ही कहता आया हूँ कि एक स्टूडेंट को बारहवीं के बाद कम से कम एक साल का ब्रेक लेना चाहिए। हम बचपन से लेकर हमारी युवावस्था तक भागते ही रहते है। कभी हम खुद से यह सवाल नहीं करते है कि हमे कैसा जीवन जीना है। बस जो सब कर रहे है और सब कह रहे है वो ही हमारे सपने, हमारी इच्छाएं बन जाती है। पर फिर एक वक़्त आता है जब हमे रिग्रेट होता है कि काश मैंने यह किया होता या इस क्षेत्र मे अपना करियर बनाया होता। बरहवीं के बाद का वक़्त वो वक़्त…