आदिवासी जीवन और हम…

अन्वेषक: जगन्नाथ मांझी व्यवसाय: कृषक स्थान: मुनिगुडी, ओड़ीशा हमारे अगले परिंदे जगन्नाथ मांझी ओड़ीशा की नियामगिरी पहाड़ियों के बीच मे रहने वाले एक आम आदिवासी है। वहीं नियामगिरी पहाड़ जिसे हमारी सरकार ने बॉक्साइट खोदकर निकालने के लिए वेदांता जैसी बड़ी खनन कंपनी को भाड़े पर दे दिया था। इसकी वजह से इन पहाड़ो मे रहने वाले आदिवासियों के चार सौ से भी अधिक गावों के उजड़ने का खतरा मंडरा रहा है। नियामगिरी के आदिवासियों ने अपने संघर्ष के माध्यम से अभी तक इन पहाड़ों को, यहाँ के जंगलों को, नदियों को अभी तक बचा रखा है। जब हमारे निज़ामों को इन आदिवसियों के संघर्ष के आगे झुकना पड़ा, तब…

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अनुभवों से बनता जीवन

अन्वेषक: सरस्वती कवालु व्यवसाय: शोधक स्थान: हैदराबाद, तेलंगाना जब आप प्रकृति के बीच रहते है तो आपको प्रकृति से रिश्ता बनाने के लिए कुछ खास प्रयास नहीं करने पड़ते । हरे-भरे पेड़, कई तरह के रंग-बिरंगे फूल, पक्षियों का मधुर संगीत, ताज़ी हवा, शुद्ध पानी और भी बहुत कुछ ऐसी चीज़ें जिनकी खूबसूरती को शब्दों मे बयां करना मुश्किल है, की हम उस तरफ आकर्षित हुए बिना नहीं रह पाते है। इसी आकर्षण की वजह से हमारा न चाहते हुए भी प्रकृति से एक खास रिश्ता बन जाता है। क्योंकि हम देख पाते है की हम इससे अलग नहीं है। हम इसी का एक हिस्सा है और हमारा वजूद इसके…

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रासायनिक रंगो से मैला जीवन

अन्वेषक: तिरुमुरुगन और शिवराज वव्यवसाय: प्राकृतिक रंगरेज स्थान: इरोड, तमिलनाडु प्राचीन काल से हमारे कपड़ों को प्राकृतिक तत्वों जैसे खनिज, पौधों और फूलों से रंगा जाता था। वास्तव में, रंगाई ऐतिहासिक दृष्टि से एक खूबसूरत कला का रूप था। इस कला ने अपना स्वरूप तब खोना शुरू किया, जब 1856 मे वैज्ञानिकों ने कृत्रिम रंग बनाने के तरीकों की खोज की थी। विभिन्न रसायनों के प्रयोग से वैज्ञानिकों ने कई नए रंगो को ईज़ाद किया जो लोगों को आकर्षित करने मे कामयाब रहे, वहीं इन कृत्रिम रंगों ने कपड़ा बनाने की लागत को भी कई प्रतिशत कम कर दिया। इन नए रंगों ने कपड़ा उद्योग को पूरी तरह से बदल…

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कयामत से कयामत तक

अन्वेषक: मंसूर खान व्यवसाय: शोधक स्थान: कूनूर बॉलीवूड के एक सफल निर्देशक मंसूर खान, जिन्होंने कयामत से कयामत तक, जो जीता वहीं सिकंदर जैसी सफल फिल्मों का निर्देशन किया है, आजकल नीलगिरी की पहाड़ियों के बीच  बसे एक छोटे से, पर खूबसूरत क़स्बे कूनूर मे अपना जीवनयापन कर रहें है। जब मैं उनसे मिला तो मेरा पहला सवाल यहीं था की क्या वजह है कि वे बॉलीवुड कि चमचमाती दुनिया को छोड़कर इन पहाड़ों मे आकर क्यों बस गए है? वो कहते है कि “ मैं कभी भी फिल्म जगत का हिस्सा नहीं बनना चाहता था। मैं हमेशा से जानता था कि मैं शहर कि भागदौड़ से दूर प्रकृति के…

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प्रकृति से हस्तशिल्प तक

अन्वेषक: गिरिजा और आनंद व्यवसाय: प्रकृति हस्तशिल्पकार स्थान: तिरुनेल्वेलि एक छोटे शहर के आम मध्यमवर्गीय परिवार की तरह ही गिरिजा और आनंद के सपने भी बेहद आम थे। वैसे आनंद को बचपन से ही यात्रा करना, प्रकृति के बीच मे रहना, नयी चीज़ें सीखने का बेहद शौक था। उनका यह शौक शादी के बाद भी बरकरार रहा। उनकी खुशकिस्मती ही थी की उन्हें जीवनसाथी भी उनके विचारों को समझने वाला और उनका हर कदम पर साथ देने वाला मिला। आनंद जहाँ एक इंटीरियर डिज़ाइनर थे वही गिरिजा एक बैंक मे सहायक प्रबन्धक थी। शादी के कुछ समय बाद ही गिरिजा का स्थानान्तरण मदुरै से तिरुनेल्वेलि हो गया। इस दौरान आनंद…

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येल्लो बैग्स…

अन्वेषक- कृष्णन और गौरी व्यवसाय-उधमी स्थान- मदुरै प्लास्टिक बैग (थैलियाँ) हमारी ज़िंदगी मे सबसे पहले 1977 मे आए थे। इन्हे सबसे पहले न्यूयॉर्क के सुपरमार्केट मे प्रयोग किया गया था। इन चालीस सालों मे प्लास्टिक बैग हमारी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन गए है। औसतन दुनिया का हर व्यक्ति 200 प्लास्टिक बैग हर साल उपयोग कर कचरे मे डाल देता है। हर साल हम 10 खरब(1 ट्रिल्यन) प्लास्टिक बैग्स का उपयोग करते है, यानि लगभग 20 लाख प्लास्टिक बैग प्रति मिनिट। एक प्लास्टिक बेग को फिर से धरती मे समाने के लिए लगभग 1000 साल लगते है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है की स्थिति कितनी भयानक है। एक…

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जैविक कृषी एक प्रयास

अन्वेषक:पार्थसार्थी और रेखा व्यवसाय:जैविक कृषक स्थान: चेन्नई,तमिलनाडु हरित क्रांति से पहले हमारे खाने मे जैविक और अजैविक जैसा कोई अंतर नहीं था। हरित क्रांति के वक़्त हमारे किसानों तक यह कहकर पेस्टिसाइड्स पहुंचाया गया की इससे फसल में कीड़े नहीं लगेंगे,खेतों में ज्यादा पैदावार होगी और आपकों ज्यादा पैसा मिलेगा। दूसरी तरफ आम शहरी जनता को यह कहकर भ्रमित किया गया कि अगर भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनना है तो हमें इन रसायनों का प्रयोग करना जरूरी है। आज इस बात को 50 से भी ज्यादा साल हो गए है फिर भी हमारी दाल अफ्रीका मे उग रही है, हमारे किसान जिनकी आत्महत्या कि खबरें शायद ही कभी…

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प्रकृति और नारी का अस्तित्व

अन्वेषक: संघीता श्रीराम व्यवसाय: आध्यात्मिक एक्टिविस्ट स्थान: तिरुवन्नामलाई, तमिलनाडु वह एक लेखक है, एक एक्टिविस्ट है, एक उद्यमी है, एक शिक्षाविद् है, एक संयोजक है, एक बागवान है, एक गायिका है, एक कलाकार है। वह एक औरत है और एक माँ भी... पर वह खुद को एक यात्री कहलाना पसंद करती है। एक ऐसी यात्री जो निरंतर अपने जीवन के अनुभवों से सीखते हुए और उनसे उभरकर आए सवालों के जवाब खोजते हुए एक ऐसे पथ पर यात्रा कर रही है जहाँ कोई मंज़िल नहीं है, बस है तो कुछ पड़ाव। जहाँ उसे कुछ समय रुककर आगे बढ़ जाना है। मैं बात कर रहा हूँ हमारे अगले परिंदे संगीता श्रीराम…

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सपनो का आशियाना…

“Travel is fatal to prejudice, bigotry, and narrow-mindedness, and many of our people need it sorely on these accounts. Broad, wholesome, charitable views of men and things cannot be acquired by vegetating in one little corner of the earth all one’s lifetime.” – Mark Twain एक बच्चे के युवक बनने की प्रक्रिया में शिक्षा का अहम स्थान होता है और उस शिक्षा को प्राप्त करने के लिए जरूरी है, नए अनुभव प्राप्त करना। इन अनुभवों को हम चार दीवारों के भीतर बैठकर कभी नहीं प्राप्त कर सकते है। मैं हमेशा मानता आया हूँ कि “Travel is our best teacher” जब आप उन चार दीवारों से बाहर निकलते है तो कई…

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दुनिया को अपनी कक्षा बनाओ

अन्वेषक: स्नेहल त्रिवेदी व्यवसाय: जैविक किसान स्थान: औरोविल अपनी पूरी ज़िंदगी एक ग्राफिक डिज़ाइनर की तरह बिताने वाले स्नेहल त्रिवेदी को दो वर्षो तक जब इंग्लैंड मे रहने का मौका मिला, तब पाश्चत्य संस्कृति और शहर की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी से उनका मन भर गया। कुछ वर्ष पूर्व फिर से अपनी जड़ों से जुड़ने की चाहत मे उन्होने इंग्लैंड से आकर औरोविल के समीप एक छोटे से गाँव में अपनी एक नयी ज़िंदगी का सफर शुरू किया। 2007 मे उन्होने औरोविल के समीप एक छोटे से गाँव मे एक एकड़ बंजर ज़मीन खरीदी, उनका सपना था की वे इस ज़मीन पर अपने लिए एक छोटा सा घर बनाए जो पूरी…

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